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जैनागम स्तोक सग्रह ३ प्रायश्चित प्रतिक्रमण करे, ४ दोषित वस्तु का त्याग करे, ५ दस, वीस, तीस, चालीस, लोगस्स का काउसग्ग करे, ६ एकाशन, आयंवलि यावत् छमासी तप करावे, (७) ६ मास तक को दीक्षा घटावे, ८ दीक्षा घटा कर सबसे छोटा बनावे, ६ समुदाय से वाहर रख कर मस्तक पर श्वेत कपडा (पाटा) बन्धवा कर साधुजी के साथ दिया हुआ तप करे, १० साधु वेष उतरवा कर गृहस्थ वेष में छमाह तक साथ फेर कर पुनः दीक्षा देवे। __२ विनय के भेद-मति ज्ञानी. श्रत ज्ञानी, अवधि ज्ञानी, मनः पर्यय ज्ञानी, केवल ज्ञानी आदि की असातना करे नही, इनका वहुमान करे, इनका गुण कीर्तन करके लाभ लेना । यह ज्ञान विनय जानना।
चारित्र विनय के ५ भेद-पॉच प्रकार के चारित्र वालों का विनय करना।
योग विनय के ६ भेद-मन, वचन, काया ये तीनों प्रशस्त और अप्रशस्त एव ६ भेद है । अप्रशस्त काय विनय के ७ प्रकार-अयत्ना से चले, बोले, खड़ा रहे, बैठे, सोवे, इन्द्रिय स्वतन्त्र रक्खे, तथा अगोपांग का दुरुपयोग करे ये सातों अयत्ना से करे तो अप्रशस्त विनय
और यत्ना पूर्वक प्रवर्तावे सो प्रशस्त विनय।। ___ व्यवहार विनय के ७ भेद-१ गुर्वादिक के विचार अनुसार प्रवर्ते , २ गुरु आदि की आज्ञानुसार वर्ते ३ भात पानी आदि लाकर देवे ४ उपकार याद करके कृतज्ञता पूर्वक सेवा करे ५ गुर्वादिक की चिन्ता-दुख जानकर दूर करने का प्रयत्न करे ६ देश काल अनुसार उचित प्रवृत्ति करे ७ निद्य (किसी को खराव लगे ऐसी) प्रवृत्ति न करे।
३ वैयावच्च (सेवा) तप के १० भेद-१ आचार्य की, २ उपाध्याय की, ३ नव दीक्षित की, ४ रोगी की, ५ तपस्वी की, ६ स्थविर की,