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बारह प्रकार का तप
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७ स्वधर्मी को, ८ कुलगुरु की, ६ गणावच्छेदक की १० चार तीर्थ की वैयावच्च (सेवा-भक्ति) करे ।
४ स्वाध्याय तप के ५ भेद-१ सूत्रादि की वाचना लेवे व देवे २ प्रश्नादि पूछ कर निर्णय करे, पढे हुवे ज्ञान को हमेशा फेरता रहे ४ सूत्र-अर्थ का चितवन करता रहे, ५ परिषद मे चार प्रकार की कथा कहे।
५ ध्यान तप के ४ भेद-आर्त ध्यान, रौद्र ध्यान, धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान । ___ आर्त ध्यान के चार भेद-१ अमनोज्ञ (अप्रिय) वस्तु का वियोग चितवे, २ मनोज्ञ (प्रिय) वस्तु का सयोग चितवे, ३ रोगादि से घबरावे, ४ विषय भोगो मे आसक्त बना रहे उसकी गृद्धि से दुख होवे। चार लक्षण-१ आक्रद करे, २ शोक करे, ३ रुदन करे, ४ विलाप करे।
रौद्र ध्यान के चार भेद-हिंसा मे, असत्य मे, चोरी मे, और भोगोपभोग मे आनन्द माने । चार लक्षण-१ जीव हिसा का २ असत्य का ३ चोरी का थोडा वहुत दोष लगावे ४ मृत्युशय्या पर भी पाप का पश्चात्ताप नही करे।
धर्म ध्यान के भेद-चार पाये-१ जिनाज्ञा का विचार २ रागद्वेष उत्पत्ति के कारणो का विचार ३.कर्म विपाक का विचार ४ लोक सस्थान का विचार।
चार रुचि-१ तीर्थकर की आज्ञा आराधना करने की रुचि २ शास्त्र श्रवण की रुचि ३ तत्त्वार्थ श्रद्धान की रुचि ४ सूत्र सिद्धान्त पढने की रुचि ।
चार अवलम्बन १ सूत्र सिद्धान्त की वाचना लेना व देना २ प्रश्नादि पूछना : पढे हुए ज्ञान को फेरना ४ धर्म कथा करना।
चार अनुपेक्षा-१ पुद्गल को अनित्य नाशवन्त जाने २ ससार मे कोई किसी को शरण देने वाला नही ऐसा चितव.४ मै अकेला ह. ऐसा सोचे ४ ससार-स्वरूप विचारे.एव धर्म-ध्यान के १६, भेद हुए।