Book Title: Jainagam Stoak Sangraha
Author(s): Maganlal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 594
________________ जीव-परिणाम पद ( श्री पन्नवणा सूत्र, तेरहवां पद ) जिस परिणति से परिणमे उसे परिणाम कहते है । जैसे जीव स्वभाव से निर्मल, सच्चिदानन्द रूप है । तथापि पर प्रयोग से कषाय में परिणमन होकर कषायी कहलाता है । इत्यादि । परिणाम दो प्रकार का है - १ जीव परिणाम, २ अजीव परिणाम । M १ जीव परिणाम - जीव परिणाम १० प्रकार का है - गति, इन्द्रिय कषाय, लेश्या, योग, उपयोग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वेद परिणाम | विस्तार से गति के ४, इन्द्रिय के ५. कषाय के ४, लेश्या के ६, योग के ३, उपयोग के २ ( साकार ज्ञान और निराकार दर्शन), ज्ञान के ( ५ ज्ञान, ३ अज्ञान), दर्शन के ३ ( सम - मिथ्या - मिश्र दृष्टि ), चारित्र के १ ( ५ चारित्र, १ देश व्रत और अव्रत ), वेद के ३, एवं कुल ४५ बोल है । और समुच्चय जीव में १ अनिन्द्रिय, २ अकषाय, ३ अलेषी. ४ अयोगी और ५ अवेदी । एवं ५ बोल मिलाने से ५० बोल हुए । समुच्चय जीव एवं ५० बोल पने परिमणते है । अब ये २४ दण्डक 'पर उतारे जाते है | ( १ ) सात नारकी के दण्डक मे २६ बोल पावे १ नरक गति, ५ इन्द्रिय, ४ कषाय, ३ लेश्या, ३ योग, २ उपयोग, ६ ज्ञान ( ३ ज्ञान, ३ अज्ञान ) ३ दर्शन, १ असंयम चारित्र, १ वेद नपुंसक एव २६ बोल । ( ११ ) १० भवन पति १ व्यन्तर एव ११ दण्डक में ३१ बोलपावे नारकी के २६ बालो मे १ स्त्री वेद और १ तेजो लेश्या वढाना । ५७६

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