Book Title: Jainagam Stoak Sangraha
Author(s): Maganlal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

View full book text
Previous | Next

Page 584
________________ खेता-वाई ( श्री पन्नवणा सूत्र, तीसरा पद ) तीन लोकों के ६ भेद ( भाग ) करके प्रत्येक भाग मे कौन रहता है ? यह बताया जाता है । ऊर्ध्व लोक ( १ ) ऊर्ध्व लोक ( ज्योतिषी देवता के ऊपर के तले से ऊपर ) से-१२ देवलोक, ३ किल्विषी, ६ लोकांतिक, ६ ग्रेयवेक, ५ अनुत्तर विमान इन ३८ देवो के पर्याप्ता, अपर्याप्ता (७६ देव) तथा मेरु की वापी अपेक्षा वादर तेऊ के पर्याप्ता सिवाय ४६ जाति के तिर्यच होवे, एवं ७६-+४६=१२२ भेद ( प्रकार ) के जीव होते है । अधोलोक (२ ) अधो लोक ( मेरु की समभूमि से ६०० योजन नीचे तीळ लोक उससे नीचे ) में जीव के भेद ११५ है-७ नारकी के १४ भेद, १० भवनपति, १५ परमाधामी के पर्या० अपर्या० एव ५० देव, सलीलावति विजय अपेक्षा ( १ महाविदेह का पर्या० अपर्या और संमूछिम मनुष्य ) ३ मनुष्य और ४८ तिर्यच के भेद मिलाकर १४+ ५०+३+४८=११५ है। तिर्यक् लोक ( ३ ) तीर्छा लोक ( १८०० योजन ) में ३०३ मनुष्य, ४८ तिर्यच और ७२ देव ( १६ व्यन्तर, १० भका, १० ज्योतिषी इन ३६ के पर्या० अपर्या० ) कुल ४२३ के भेद जीव है । ऊर्ध्व तिर्यक् लोक ( ४ ) ऊर्ध्व-तीळ लोक-( ज्योतिषी के ऊपर के तलाके प्रदेशी

Loading...

Page Navigation
1 ... 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603