Book Title: Jainagam Stoak Sangraha
Author(s): Maganlal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

View full book text
Previous | Next

Page 583
________________ संस्थान के मांगे (श्री भगवती सूत्र, शतक २५ उद्देशा ३) सस्थान ५ प्रकार का है-१ परिमडल, २ वट्ट, ३ त्रस, ४ चौरस, ५ आयतन । ये पांचो ही संस्थान सख्याता, असख्याता नही परन्तु अनन्ता है। ७ नारकी, १२ देवलोक, ६ गवेयक, ५ अनुत्तर विमान, सिद्ध शिला और पृथ्वी के ३५ स्थान मे पाच प्रकार के अनन्ता अनन्ता सस्थान है एव ३५४५= १७५ भागे हुवे। एक यवमध्य परिमडल सस्थान मे दूसरा परिमडल सस्थान अनन्त है । एवं यावत् आयतन सस्थान तक अनन्त अनन्त कहना । इसी प्रकार एक यवमध्य परिमडल के समान अन्य ४ सस्थानो की व्याख्या करना । एक सस्थान मे दूसरे पाचो ही सस्थान अनन्त है अत प्रत्येक के ५४५=२५ बोल । इन उक्त ३५ स्थानो मे होवे अर्थात् ३५+२५=८७५ और १७५ पहले के मिल कर १०५० भागे हुए। ५६५

Loading...

Page Navigation
1 ... 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603