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चरम पद (श्री पन्नवरणा सूत्र, दशवां पद) चरम की अपेक्षा अचरम है और अचरम को अपेक्षा चरम है। इनमें कम से कम दो पदार्थ होने चाहिये। नीचे रत्नप्रभादि एकेक पदार्थ का प्रश्न है। उत्तर में अपेक्षा से नास्ति है। अन्य अपेक्षा से अस्ति है । इसी को स्यादवाद् कहते है।
पृथ्वी ८ प्रकार की है - ७ नारकी और ईशद् प्राग्भारा (सिद्ध शिला)।
प्रश्न- रत्नप्रभा क्या (१) चरम है ? (२) अचरम है ? (३) अनेक चरम है ? (४) अनेक अचरम है ? (५) चरम प्रदेश है ? (६) अचरम प्रदेश है ?
उत्तर-रत्नप्रभा पृथ्वी द्रव्यापेक्षा एक है । अत चरमादि ६ बोल नहीं होवे । अन्य अपेक्षा रत्नप्रभा के मध्य भाग और अन्त भाग ऐसे दो भाग करके उत्तर दिया जाय तो-चरम पद का अस्तित्व है । जैसे रत्नप्रभा; पृथ्वी, द्रव्यापेक्षा (१) चरम है । कारण कि मध्य भाग की अपेक्षा बाहर का भाग (अन्त भाग) चरम है। (२) अचरम है। कारण कि अन्त भाग की अपेक्षा मध्य भाग अचरम है। क्षेत्रापेक्षा (३) चरम प्रदेश है । कारण कि मध्य प्रदेशापेक्षा अन्त चरम है और (४) अचरम प्रदेश है । कारण कि अन्त प्रदेशापेक्षा मध्य का प्रदेश अचरम है।
रत्नप्रभा के समान ही नीचे के ३६ बोलो को चार-चार बोल लगाये जा सकते है । ७ नारकी, १२ देव लोक, 8 ग्रेवेयक, ५ अनुत्तर
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