Book Title: Jainagam Stoak Sangraha
Author(s): Maganlal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 573
________________ भाषा-पद ५५५ है, इनमें सर्व परित्तय यह कि है, इनमें आधे जीव हैं, आधे अजीव है, यह वनस्पति समस्त अनन्त काय है वह सर्व परित्त काय है । पोरसी दिन आ गया । इतने वर्ष व्यतीत हो गये, तात्पर्य यह कि जब तक जिस बात का निश्चय न होवे [ चाहे कार्य हुआ हो ] वहा तक मिश्र भाषा । ___व्यवहार भाषा के १२ प्रकार--१ सबोधित भाषा [ हे वीर, हे देव इ० ] २ आज्ञा देना ३ याचना करना ४ प्रश्नादि पूछना ५ वस्तुतत्त्व प्ररूपणा करनी ६ प्रत्याख्यानादि करना ७ सामने वाले की इच्छानुसार बोलना “जहासुह" ८ उपयोग शून्य बोलना ६ इरादा पूर्वक व्यवहार करना १० शंका युक्त बोलना ११ अस्पष्ट बोलना, १२ स्पष्ट बोलना, जिस भाषा मे असत्य न होवे और सपूर्ण या तो उसे व्यवहार भाषा जानना। २१ अल्प बहुत्व -सब से कम सत्य भाषक, उनसे मिश्र भाषक असंख्यात गुणा, उससे असत्य भाषक असख्यात गुणा, उनसे व्यवहार भाषक असख्यात गणा और उनसे अभाषक ( सिद्ध तथा एकेन्द्रिय) निश्चय सत्य न होवे अनन्त गुणा।

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