Book Title: Jainagam Stoak Sangraha
Author(s): Maganlal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 578
________________ सावचया सोवचया (श्री भगवती सूत्र, शतक ५, उ० ८) १ सावचया (वृद्धि), २ सोवचया (हानि), ३ सावचया सोवचया (वृद्धि-हानि) और ४ निरुवचया (न तो वृद्धि और न हानि)। इन चार भागों पर प्रश्नोत्तर । समुच्चय जीवो में चौथा भांगा पावे, शेष तीन नही, २४ दण्डक मे चार ही भांगा पावे। सिद्ध मे भांगा २ (सावचया और निरुवचया-निरवचया) ___ समुच्चय जीवों में जो निरुवचया-निरवचया है वे सर्वार्थ है। और नारकी में निरुवचया-निरवचया सिवाय तीन भागों की स्थिति ज० १ समय की उ० आवालिका के असख्यात भाग की तथा निरुवचया-निरवचया की स्थिति विरह द्वारवत्, परन्तु पांच स्थावर मे निरुवचया-निरवचया भी ज० १ समय, उ० आवलिका के असंख्यातवे भाग सिद्ध मे सावचया जघन्य १ समय उत्कृष्ट ८ समय की और निरुवचया-निरवचया जघन्य १ समय की उत्कृष्ट ६ माह को स्थिति जानना। नोट :-पाच स्थावर मे अवस्थित काल तथा निरुवचया निरवचया काल आवलिका के असख्यातवे भाग कही हुई है यह परकायापेक्षा है । स्वकाय का विरह नही पडता।

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