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क्रत संचय (श्री भगवती सूत्र, शतक २०, उद्देशा १०) ( १ ) कत सचय-जो एक समय मे दो जीवो से सख्याता जीव उत्पन्न होते है।
( २ ) अक्रत सचय-जो एक समय मे असख्याता अनन्ता जीव उत्पन्न होते है।
( ३ ) अवक्तव्य संचय-एक समय मे एक जीव उत्पन्न होता है।
१ नारकी (७), १० भवन पति, ३ विकलेन्द्रिय, १ तिर्यञ्च पचेन्द्रिय, १ मनुष्य, १ व्यन्तर, १ ज्योतिषी और १ वैमानिक एव १६ दण्डक मे तीनो ही प्रकार के सचय ।
पृथ्वी काय आदि ५ स्थावर से अक्रत संचय होता है। शेष दो सचय नही होते कारण समय-समय असंख्य जीव उपजते है । यदि किसी स्थान पर १-२-३ आदि संख्याता कहे हो तो उनको परकायापेक्षा समझना। सिद्ध क्रत संचय तथा अवक्तव्य सचय है, अक्रत सचय नही।
अल्प बहुत्व नारकी मे सर्व से कम अवक्तव्य सचय उनसे क्रत सचय सख्याता गुणा उनसे अक्रत सचय असंख्यात गुणा एव १६ दण्डक का अल्पवहुत्व जानना।
५ स्थावर मे अल्प बहुत्व नही।
सिद्ध मे सर्व से कम क़त सवय, उनसे अवक्तव्य सचय सख्यात गुणा ।
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