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जैनागम स्सोक सग्रह नपुंसक के बीस कम होती है, इनसे हड्डियाँ ढंकी हुई रहती है। हाड सर्व मिला कर ३६० सांधे ( जोड़ ) होते है । एकेक जोड़ पर आठआठ मर्म के स्थान है। इन मर्म स्थानो पर एक टकोर लगने पर मरण पाता है। अन्य मान्यता से एक सौ साठ सधि और १७० मर्मस्थान होते है। उपरांत सर्वज्ञ गम्य । शरीर मे छ: अङ्ग होते है। जिनमें से मांस, लोही और मस्तक की मज्जा ( भेजा ) ये तीन अङ्ग माता के है और हड्डी ( हाड़ ) मज्जा और नख, केश, रोम ये तीन अङ्ग पिता के है । आठवे महीने सर्व अङ्ग उपाङ्ग पूर्ण हो जाते है। इस गर्भ को लघु नीत, बड़ी नीत श्लेष्म, उधरस, छीक, अगड़ाई आदि कुछ नही होता व जिस जिस आहार को खेचता है उस २ आहार का रस इन्द्रियो को पुष्ट करता है। हाड़, हाड़ की मज्जा चरवी, नख केश की वृद्धि होती है। __ आहार लेने की दूसरी रीति यह है कि माता की तथा गर्भ की नाभि व व ऊपर की रसहरणी नाडी ये दोनो परस्पर वाले ( नेहरू) के आटे के समान वीटे हुए है । इसमें गर्भ की नाड़ी का मुंह माता की नाभि मे जुड़ा हुआ होता है। माता के कोठे में पहले जो आहार का कवल पड़ता है वह नाभि के पास अटक जाता है व इसका रस बनता है, जिससे गर्भ अपनी जुडी हुई रसहरणी नाड़ी से खेच कर पुष्ट होता है। शरीर के अन्दर ७२ कोठे है, जिनमे से पांच बड़े है । शीयाले मे दो कोठे आहार के और एक कोठा जल का व गर्मी मे दो कोठे जल के और एक कोठा आहार का तथा चौमासे मे दो कोठे आहार के और दो कोठे जल के माने जाते है । एक कोठा हमेशा खाली रहता है । स्त्री के छट्टा कोठा विशेष होता है कि जिसमें गर्भ रहता है । पुरुष के दो कान, दो चक्षु, दो नासिका (छेद), मुंह, लघु नीत, बडी नीत आदि नव द्वार अपवित्र और सदा काल वहते रहते है और स्त्री के दो थन (स्तन) और एक गर्भ द्वार ये तीन मिल कर कुल वारह द्वार सदाकाल वहते रहते है।