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सम्यक् पराक्रम के ७३ बोल ( श्री उत्तराध्ययन सूत्र, २६ वा अध्ययन ) १ वैराग्य तथा मोक्ष पहुँचने की अभिलाषा। २ विषय-भोग की अभिलाषा से रहित होना। ३ धर्म करने की श्रद्धा। ४ गुरु व स्वधर्मी की सेवा-भक्ति करना। ५ पाप की आलोचना करना। ६ आत्म-दोषो की आत्म-साक्षी से निन्दा करना। ६ गुरु के समीप पाप की निन्दा करना। ८ सामायिक (सावध पाप से निवृत होने को मर्यादा) करे। १ तीर्थंकरो की स्तुति करे। १० गुरु को वन्दन करे। ११ पाप निर्वतन-प्रतिक्रमण करे। १२ काउसग्ग करे, १३ प्रत्याख्यान करे, १४ सन्ध्या समय प्रतिक्रमण करके नमोत्थुण कहे, स्तुति मङ्गल करे, १५ स्वाध्याय का काल प्रतिलेखे, १६ प्रायश्चित्त लेवे, १७ क्षमा मागे, १८ स्वाध्याय करे, १६ सिद्धान्त की वाचना देवे, २० सूत्र-अर्थ के प्रश्न पूछे, २१ बारम्बर सूत्र ज्ञान फेरे, २२ सूत्रार्थ चिन्तवे २३, धर्म-कथा कहे, २४ सिद्धान्त की आराधना करे, २४ एकाग्न शुभ मन की स्थापना करे २६ सतरह भेद से सयम पाले, २७ बारह प्रकार का तप करे, २८ कर्म टाले, २६ विषय सुख टाले, ३० अप्रतिबन्धपना करे, ३१ स्त्री-पुरुष नपुंसक रहित स्थान भोगवे, ३२ विशेषत: विषय आदि से निवर्ते, ३३ अपना तथा अन्य का लाया हुआ आहार
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