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जैनागम स्तोक संग्रह
(४) रुपातीत -- सच्चिदानन्द, अगम्य, निराकार, निरञ्जन सिद्ध प्रभु का ध्यान करना ।
चार अनुयोग -१ द्रव्यानुयोग - जीव, अजीव, चैतन्य जड़ (कर्म) आदि द्रव्यों का स्वरूप का जिसमे वर्णन होवे |
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(२) गणितानुयोग - जिसमे क्षेत्र, पहाड़, नदी, देवलोक, नारकी, ज्योतिषी आदि के गणित माप का वर्णन होवे |
(३) चरणानुयोग - जिसमें साधु श्रावक का आचार, क्रिया का वर्णन होवे |
(४) धर्म कथानुयोग - जिसमे साधु श्रावक, राजा, रङ्क आदि के वैराग्यमय बोधदायक जीवन प्रसंगों का वर्णन होवे |
जागरण तीन - ( १ ) बुध जाग्रिका - तीर्थकर और केवलियो की दशा । (२) अबुध जाग्रिका - छद्मस्थ मुनियों की और (३) सुद खु जाग्रिका -- श्रावको की ( अवस्था ) ।
व्याख्या नय -- एकेक वस्तु की उपचार नय से ६-६ प्रकार से व्याख्या हो सकती है ।
( १ ) द्रव्य मे द्रव्य का उपचार - जैसे काष्ठ मे वशलोचन
( २ )
जीव
( ३ )
गुण का
पर्याय का
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मे द्रव्य का
गुण
(६) गुरण मे पर्याय
( ७ ) पर्याय में द्रव्य
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( ४ ) गुरण
( ५ )
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ज्ञानवन्त है स्वरूपवान है ।
अज्ञानी जीव है ।
ज्ञानी होने पर भी क्षमावंत है ।
यह तपस्वी बहुत स्वरूपवान है |
यह प्राणी देवता का जीव है ।
यह मनुष्य वहुत ज्ञानी है ।