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प्रमाण-नय
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आविर्भाव-तिरोभाव-जो पदार्थ गुण दूर है वो तिरोभाव और जो पदार्थ गुण समीप मे है वो आविर्भाव । जैसे-दूध मे घी का तिरोभाव है और मक्खन मे घी का आविर्भाव है।
गौणता-मुख्यता-अन्य विषयो को छोड कर आवश्यक वस्तुओं का व्याख्यान करना सो मुख्यता और जो वस्तु गुप्त रूप से अप्रधानता से रही हो वो गौणता । जैसे-ज्ञान से मोक्ष होता ऐसा कहने में ज्ञान की मुख्यता रही और दर्शन, चारित्र तपादि की गौणता रही।
उत्सर्ग-अपवाद - उत्सर्ग यह उत्कृष्ट मार्ग है और अपवाद उसका रक्षक है उत्सर्ग माग से पतित अपवाद का अवलबन लेकर फिर से उत्सर्ग ( उत्कृष्ट ) मार्ग पर पहुच सकता है । जैसे सदा ३ गुप्ति से रहना यह उत्सर्ग मार्ग है और ५ समिति यह गुप्ति के रक्षक (सहायक) अपवाद मार्ग है । जिन कल्प उत्कृष्ट मार्ग है, स्थविरकल्प अपवाद मार्ग । इत्यादि षट् द्रव्य मे भी जानना चाहिए।
तीन आत्मा-बहिरात्मा अन्तरात्मा और परमात्मा।
बहिरात्मा-शरीर, धन, धान्यादि समृद्धि, कुटुम्ब परिवार आदि मे तल्लीन होवे सो मिथ्यात्वी । ___ अन्तरात्मा-वाह्य वस्तु को अन्य समझ कर उसे त्यागना चाहे व त्यागे वो अन्तरात्मा ४ से १३ गुण स्थान वाले ।
परमात्मा-सर्व कार्य जिसके सिद्ध हो गये हो और कर्म मुक्त होकर जो स्व-स्वरूप मे लीन है वह सिद्ध परमात्मा ।
चार ध्यान-(१) पदस्थ :--पञ्च परमेष्टि के गुणो का ध्यान करना सो पदस्थ ध्यान ।
(२) पिंडस्थ-शरीर मे रहे हुए अनन्त गुणयुक्त चैतन्य का अध्यात्म-ध्यान करना।
(३) रूपस्थ-अरूपी होते हुए भी कर्म योग से आत्मा संसार मे अनेक रूप धारण करती है एव विचित्र संसार अवस्था का ध्यान करना और उससे छूटने का उपाय सोचना।