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प्रमारण-नय
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कर्ता माना जाता है। जैसे निश्चय से हम चलते है, किन्तु व्यवहार से कहा जाता है कि गांव आया, जल चूता है। परन्तु कहा जाता है कि छत चूती है इत्यादि ।
उपादान निमित्त-उपादान यह मूल कारण है, जो स्वयं कार्य मे परिणमता है। जैसे घट का उपादान कारण मिट्टी और निमित्त यह सहकारी कारण है। जैसे घट वनाने मे कुम्हार, पावड़ा, चाक आदि। शुद्ध निमित्त कारण होवे तो उपादान को साधक होता है और अशुद्ध निमित्त होवे तो उपादान को बाधक भी होता है।
चार प्रमाण-प्रत्यक्ष, आगम, अनुमान, उपमा प्रमाण । प्रत्यक्ष के दो भेद : (१) इन्द्रिय प्रत्यक्ष (पांच इन्द्रियो से होने वाला प्रत्यक्ष ज्ञान), (२ नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष (इन्द्रियो को सहायता के विना केवल आत्म-शुद्धता से होने वाला प्रत्यक्ष ज्ञान )। इसके दो भेद -१ देश से (अवधि और मन. पर्यव) और २ सर्व से (केवल ज्ञान)।
आगम प्रमाण--शास्त्र वचन, आगमो के कथन को प्रमाण मानना। ___अनुमान प्रमाण-जो वस्तु अनुमान से जानी जावे इसके ५ भेद -
(१) कारण से-जैसे घट का कारण मिट्टी है, मिट्टी का कारण घट नही।
(२) गुण से-जैसे पुष्प मे सुगन्ध, सुवर्ण मे कोमलता, जीव मे ज्ञान ।
(३) आसरण (चिन्ह)-जैसे धुएं से अग्नि, बिजली से बादल आदि समझना व जानना।।
(४) आवयवेणं-जैसे दन्तशूल से, हाथी चूडियो से स्त्री, शास्त्र रुचि से समकिति जानना ।