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जैनागम स्तोक सग्रह को सिद्ध समान जाने, जैसे एगे आया-आत्मा एक (एक समान स्वभाव अपेक्षा ) ३ काल ४ निक्षेप और सामान्य को माने, विशेष न माने। ____३ व्यवहार नय-अन्तःकरण ( आन्तरिक दशा ) की दरकार ( परवाह ) न करते हुवे व्यवहार माने जैसे जीव को मनुष्य तिर्यच, नरक, देव माने । जन्म लेने वाला, मरने वाला आदि, प्रत्येक रूपी पदार्थो मे वर्ण, गन्ध आदि २० बोल सत्ता में है परन्तु बाहर जो दिखाई देवे केवल उन्हे ही माने जैसे हस को श्वेत, गुलाब को सुगन्धी शर्कर को मीठी माने । इसके भी शुद्ध अशुद्ध दो भेद । सामान्य के साथ विशेष माने, ४ निक्षेप, तीन ही काल की बात माने। ___ ४ ऋजु सूत्र-भूत, भविष्य की पर्यायों को छोड कर केवल वर्तमान सरल पर्याय को माने वर्तमान काल, भाव निक्षेप और विशेष को हो माने जैसे साधु होते हुवे भोग में चित्त जाने पर भोगो और गृहस्थ होते हुवे त्याग मे चित्त जाने से उसे साधु माने ।
ये चार द्रव्यास्तिक नय है । ये चारो नय समकित, देश व्रत, सर्व व्रत, भव्य अभव्य दोनो मे होवे परन्तु शुद्धोपयोग रहित होने से जीव का कल्याण नही होता।
५ शब्द नय—समान शब्दो का एक ही अर्थ करे विशेष, वर्तमान काल और भाव निक्षेप को ही माने। लिंग भेद नही माने । शुद्ध उपयोग को ही माने जैसे शकेन्द्र, देवेन्द्र, पुरेन्द्र, सूचीपति इन सव को एक माने।
६ समभिरुढ नय-शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थों को माने । जैसे शक्र सिहासन पर बैठे हुवे को ही शक्रेन्द्र माने एक अश न्यून होवे उसे भी वस्तु मान लेवे, विशेष भाव निक्षेप और वर्तमान काल को ही माने।
७ एवभूत नय-एक अश भी कम नही होवे उसे वस्तु माने । शेष को अवस्तु माने, वर्तमान काल और भाव निक्षेप को ही माने ।