Book Title: Jainagam Stoak Sangraha
Author(s): Maganlal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 558
________________ ५४० जैनागम स्तोक संग्रह ज. असं असंख्याता की राशि को परस्पर गुणा करने से ज० प्रत्येक अनंता सख्या आती है । इसमे से २ न्यून वाली सख्या म० असं० असख्याता और १ न्यून वाली उ० असं० असंख्याता जानना। ज० प्र० अनंता की राशि को गुणित करने से ज० युक्ता अनता। इसमे से २ न्यून म० प्र० अनंता, १ न्यून उत्कृष्ट प्र० अनता जानना । ज० यु० अनन्ता को परस्पर गुणित करने ज० अनन्तानन्त सख्या होती है जिसमे से २न्यून वाली म० युक्ता अनन्ता १ न्यून वाली उ० युक्ता अनन्ता जानना। ज० अनन्तानन्त को परस्पर गुणाकार करने से म० अनन्तानन्त संख्या निकलती है और परस्पर गुगाकार करे तो उ० अनन्तानन्त सख्या जानना परन्तु ससार में उत्कृष्ट अनन्तानन्त संख्या वाले कोई पदार्थ नही है। तत्व केवली गम्य । प्रमारा-नय ( श्री अनुयोग द्वार-सूत्र तथा अन्य ग्रन्थों के आधार पर २४ द्वार कहे जाते है )। (१) सात नय, ( २ ) चार निक्षेप, ( ३ ) द्रव्य गुण पर्याय ( ४ ) द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव, ( ५ ) द्रव्य-भाव, ( ६ ) कार्य-कारण, (७) निश्चय-व्यवहार, ( ८ ) उपादान-निमित्त, ( ६ ) चार प्रमाण, (१०) सामान्य-विशेष, ( ११) गुण-गुणी, (१२ ) ज्ञेय ज्ञान, ज्ञानी, ( १३ ) उप्पनेवा, विगमेवा, धुवेवा, ( १४ ) आधेय-आधार, (१५) आविर्भाव-तिरोभाव, ( १६ ) गौणता-मुख्यता, (१७) उत्सर्ग अपवाद, ( १८ ) तीन आत्मा, ( १६) चार ध्यान, ( २० ) चार

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