Book Title: Jainagam Stoak Sangraha
Author(s): Maganlal Maharaj
Publisher: Jain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar

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Page 557
________________ संख्यादि २१ वोल अर्थात डालापाला ५३६ हुआ पहुच चुका है उतना वडा लम्बा और चौड़ा पाला किन्तु १० हजार यो० गहरा ८ यो० जगतो०।। यो० की वेदिका वाला बनावे इसे सरसव से भर कर आगे के द्वीप व समुद्र मे एकेक दाना डालता जावे एक दाना बच जाने पर ठहर जावे वचे हुवे दाने को शालाक पाले मे डाले पुनः उतने ही द्वीप तथा समुद्र के विस्तार वत् ( गहराई जगती ऊपर वत् ) बनाकर सरसव से भरकर आगे के एकेक द्वीप व एकेक समुद्र मे एकेक दाना डालता जावे बचे हुवे एक दाने को डाल कर शीलाक को भर देवे भर जाने पर उसे उठा कर अन्तिम (वाकी भरे हुवे) द्वीप तथा समुद्र से आगे केक दाना डाल कर खाली करे एक दाना बचने पर पुन उसे प्रति शीलाक पाले मे डाले इस प्रकार आगे २ के द्वीप समुद्र को अनवस्थित पाला बनावे बचे हुवे एक दाने से शीलाक भरे शीलाक की बचत के एकेक दाने से प्रति शोलाक को भरे प्रति शीलाक को खाली करते हुवे बचत के एकेक दाने से महा शीलाक को भरे इस प्रकार महा शीलाक को भर देवे पश्चात् प्रति शीलाक, शीलाक और अनवस्थित को क्रम से भर देवे। ___इस तरह चार ही पाले भर देवे अन्तिम दाना जिस द्वीप व समुद्र मे पडा होवे वहा से प्रथम द्वीप तक डाले हुवे सब दानो को एकत्रित करे और चार ही पालो के एकत्रित किए हुवे दानो का एक ढेर करे इसमे से एक दाना निकाल ले तो उत्कृष्ट सख्याता, निकाला हुवा एक दाना डाल दे तो जघन्य प्रत्येक असंख्याता जानना इस दाने की सख्या को परस्पर गुणाकार (अभ्यास) करे और जो संख्या आवे बो जघन्य युक्ता असख्याता कहलाती है इसमें से एक दाना न्यून वो उ० प्र० असंख्याता दो दाना न्यून वो मध्यम प्र० असख्याता (१ आवलिका का समय ज० युक्ता असंख्याता जानना )। जघन्ययुक्ता अस० की राशि (ढेर) को परस्पर गुणा करने से जघन्य अस० असख्यात सख्या निकलती है। इसमे से १ न्यून वो उ० युक्ता असं० दो न्यून वाली म० युक्ता असं० जानना।

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