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वाणव्यन्तर विस्तार
५.२७
कन्दिय सुविच्छ
विशाल
अशोक वृक्ष महाकन्दिय हास्य हास्यरति चपक , कोदण्ड श्वेत
महाश्वेत
नाग , पयग देव पतग पतग पति तु बरु ,
सामानिक द्वार-सर्व इन्द्रो के चार चार हजार सामानिक है।
आत्म रक्षक द्वार-सर्व इन्द्रो के सोलह सोलह हजार आत्म रक्षक देव है।
परिषदा द्वार-भवनपति समान इनके भी तीन प्रकार की सभा है। ( १ ) आभ्यन्तर (२) मध्यम ( ३ ) वाह्य । सभा देव सख्या स्थिति देवी संख्या स्थिति आभ्यन्तर ८००० ०॥पल्य १०० । पल्य जारी मध्यम १०००० ०॥" से न्यून १०० । " वाह्य १२००० ०पल्य जा० १०० ० " से न्यून
देवी द्वार–प्रत्येक इन्द्र के चार चार देवी, एक-एक देवी हजार के परिवार सहित सब देविये हजार हजार वैक्रिय रूप कर सकती है।
अनीका द्वार-हाथी, घोडे आदि ७ प्रकार अनीका है प्रत्येक में ५०८००० देव होते है।
वैक्रिय द्वार–समग्र जम्बू द्वीप भरा जाय इतने रूप बनावे, सख्यात द्वीप समुद्र भरने की शक्ति है।
अवधि द्वार-ज० २५ यो०, उ० ऊचा ज्योतिषी का तला, नीचे पहली नरक और तीच्छे संख्यात द्वीप-समुद्र जाने देखे ।
परिचारण द्वार-( मैथुन ) ५ प्रकार से, भवनपति समान । सुख द्वार-अबाधित मनुष्यो के सुखो से अनत गुणा सुख है।
सिद्ध द्वार-वारण व्यन्तर देवो मे से निकल कर १ समय मे दस सिद्ध हो सके व देवियो में से ५ हो सके।