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जैनागम स्तोक संग्रह
भव द्वार-संसार भ्रमण करे तो जीव १, २, ३ अनंत भव करे।
उत्पन्न द्वार-सर्व जीव अनंती बार बारगव्यतर मे उत्पन्न हो आये है, परन्तु इन पौद्गलिक सुखों से सिद्ध नहीं हुई।
ज्योतिषी देव विस्तार ज्योतिषी देव २॥ द्वीप में ( चार चलने वाले ) और २॥ द्वीप बारह स्थिर हैं । ये पक्की ईट के आकारवत् हैं। सूर्य-सूर्य के और चन्द्र-चन्द्र के एकेक लाख योजन का अन्तर है । चर ज्योतिषी से स्थिर ज्यो० आधी क्रान्ति वाले है। चन्द्र के साथ अमिल नक्षत्र और सूर्य के साथ पुष्य नक्षत्र का सदा योग है। मानुषोत्तर पर्वत से आगे और अलोक से ११११ योजन इस तरफ उसके बीच में स्थिर ज्यो० देव विमान है । परिवार चर ज्यो० समान जानना।
ज्योतिषी के ३१ द्वार : १ नाम, २ वासा, ३ राजधानी, ४ सभा, ५ वर्ण, ६ वस्त्र, ७ चिह्न, ८ विमान चौड़ाई, ६ विमान जाडाई, १० विमान वाहक, ११ मांडला, १२ गति, १३ ताप, क्षेत्र, १४ अन्तर, १५ संख्या, १६ परिवार, १७ इन्द्र, १८ सामानिक, १६ आत्म रक्षक, २० परिषदा; २१ अनीका, २२ देवी, २३ गति, २४ ऋद्धि, २५ वैक्रिय, २६ अवधि, २७ परिचारण, २८ सिद्ध, २६ भव, ३० अल्पबहुत्व, ३१ उत्पन्न द्वार।