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भवनपति विस्तार
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सिद्ध द्वार-भवनपति में से निकले हुवे देव मनुष्य होकर १ समय मे १० जीव मोक्ष जा सके भवनपति-देवियों मे से निकली हुई देवीये (मनुष्य होकर) पाँच जीव मोक्ष जा सके।
उत्पन्न द्वार–सर्व प्राण, भूत, जीव सत्व भवनपति देव व देवी रूप से अनन्त बार उत्पन्न हुवे परन्तु सत्य ज्ञान बिना गरज सरी नही (उद्देश्य पूर्ण हुवा नहीं)
शेष विस्तार लघुदण्डक आदि थोकड़ से जानना चाहिये ।
वाराव्यंतर विस्तार
वाणव्यन्तर के २१ द्वार १ नाम, २ वास, ३ नगर, ४ राजधानी, ५ सभा, ६ वर्ण, ७ वस्त्र, ८ चिन्ह, ६ इन्द्र, १० सामानिक, ११ आत्म रक्षक, १२ परिषद, १३ देवी, १४ अनीका, १५ वैक्रिय, १६ अवधि, १७ परिचारण, १८ सुख, १६ सिद्ध, २० भव, २१ उत्पन्न द्वार।।
नाम द्वार-१६ व्यन्तर-१ पिशाच, २ भूत ३ यक्ष ४ राक्षस ५ किन्नर ६ किपुरुष ७ महोरग ८ गधर्व आगपन्नी १० पाण पन्नी ११ ईसीवाय १२ भूय वाय १३ कन्दिय १४ महा कन्दिय १५ कोदन्ड १६ पयग देव । ____ वासा द्वार-रत्न प्रभा नरक के ऊपर का १ हजार योजन का जो पिण्ड है उसमे १०० योजन ऊपर १०० योजन नीचे छोड़ कर ८०० योजन में ८ जाति के वाण-व्यन्तर देव रहते है और ऊपर के १०० यो० पिण्ड में १० यो० ऊपर, १० यो० नीचे छोड कर ८० यो० मे ६ से १६ जाति के व्यन्तर देव रहते है। (एकेक की यह मान्यता है कि ८०० यो० मे व्यन्तर देव और ८० यो० मे १० जम्भका देव रहते है।