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जैनागम स्तोक संग्रह वस्त्रादि इकट्ठ करके बांट लेवे इस प्रकार के संभोग का पच्चखाण करे, ३४ उपकरण का पच्चखाण करे, ३५ सदोष आहार लेने का पच्चखाण करे, ३६ कषाय का पच्चखाण करे, ३७ अशुभ योग का पच्च०, ३८ शरीर सुश्र षा का पच्च०, ६६ शिष्य का पच्च०, ४० आहार पानी का पच्च , ४१ दिशा रूप अनादि स्वभाव का पच्च०, ४२ कपट रहित यति के वेष और आचार मे प्रवर्ते, ४३ गुणवन्त साधु की सेवा करे, ४४ ज्ञानादि सर्वगुण सम्पन्न होवे, ४५ राग-द्वप रहित प्रवर्ते, ४६ क्षमा सहित प्रवर्ते, ४७ लोभ रहित प्रवर्ते, ४८ अहङ्कार रहित प्रवर्ते, ४६ कपट रहित ( सरल-निष्कपट ) प्रवर्ते, ५० शुद्ध अन्त करण (सत्यता) से प्र०, ५१ करण सत्य (सविधि क्रिया काण्ड करता हुआ) प्र०, ५२ योग (मन, वचन, काया) सत्य प्र०, ५३ पाप से मन निवृत कर मन गुप्ति से प्र०, ५५ काय-गुप्ति से प्र०, ५६ मन में सत्य भाव स्थापित करके प्र०, ५७ वचन (स्वाध्यायादि, पर सत्य भाव स्थापित करके प्रवर्ते, ५८ काया को सत्य भाव से प्रवर्तावे, ५६ श्रु त ज्ञानादि सहित होवे, ६० समकित सहित होवे, ६१ चारित्र सहित होवे, ६२ श्रोत्रेन्द्रिय, ६३ चक्षुन्द्रिय, ६४ घ्राणेन्द्रिय, ६५ रसेन्द्रिय, ६६ स्पर्शेन्द्रिय का निग्रह करे, ६०-७० क्रोध, मान, माया, लोभ जीते, ७१ राग-द्वेष और मिथ्यात्व को जीते, ७२ मन, वचन, काया के योगों को रोकते हुए शैलेषी अवस्था धारण करके और ७३ सब कर्म रहित होकर मोक्ष पहुचे। ___ एव आत्मा ७३ बोलो के द्वारा क्रमश. मोक्ष प्राप्त करके शीतलीभूत होती है।