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' १४ राजु लोक लोक असख्यात कोड़ाक्रोड योजन के विस्तार मे है, जिसमे पञ्चास्तिकाय भरी हुई है। अलोक मे आकाश सिवाय कुछ नही है । लोक का प्रमाण बताने के लिये 'राजु' सज्ञा दी जातो है।
३,८१,१२,६७० मन का एक भार । ऐसे १००० भार वजन के एक गोले को ऊँचा फेके तो ६ महीने, ६ दिन, ६ पहर, ६ घडी, ६ पल मे जितना नीचे आवे उतने क्षेत्र को १ राजु कहते है । ऐसे १४ राजु का लम्बा (ऊँचा। यह लोक है ।
'राजु' के ४ प्रकार (१) धनराज-लम्बाई, चौडाई, एकेक राजु, (२) परतर राज-घन राज का चौथा भाग, ( ३ ) सूचि राज-परतर राज का चौथा भाग ४) खण्ड राज–सूचि राज का चौथा भाग । ___ अधो लोक ७ -राजु जाडा ( ऊँचा ) है, जिसमे एकेक राजु की जाडी ऐसी ७ नरक है।
नाम जाडी चौडाई घनराज परतरराज सूचिराज- खडराज रत्न प्रभा १ राजु, १ राजु १ राजु ४ राजु १६ राजु ६४ राजु शकर, , २ , ६ , २५, १००, ४०० ,, बालु , , ४ , १६, ६४, २५६ ,, १०२४ ,, पक , , ५ , २५ । १०० , ०० , १६०० ,, धूम ,, , ६ , ३६ , १४४ , ५७६ ,, २३०४ , ' तम , , ६ , ४२, १६६ ,,
६७६ ,, २७०४ , तमतमा , , ७ , ४६, १६६ , ७८४ ,, ३१३६ ,
अधोलोक में कुल १७५।। धनराज, ७०२ परतर राज, २८०८ सूचि राज, ११२३२ खण्ड राज है ।।
१८०० योजन जाड़ा व १ राज विस्तार वाला तिर्छा लोक है, जिसमे असख्यात द्वीप समुद्र ( मनुष्य तिर्यञ्च के स्थान ) और ज्योतिषी देव है । तिर्छ और उर्ध्व लोक मिलकर ७ राज है।
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