________________
गर्भ विचार
३६५
की शिला पड़ी हुई है । मैथुन करने के समय गर्भ को ऊखल मूसल का न्याय है ।
इस प्रकार माता-पिता के द्वारा पहुंचाये हुए तथा गर्भस्थान के एव दो प्रकार के दुखो से पीडित, कुटाये हुए, खडाये हुए और अशुचि से तर बने हुए इस गर्भ की दया शीलवान माता पिता बिना कौन देख सके ? अर्थात् पापी स्त्री-पुरुष (विधि गर्भ से अज्ञात ) देख सकते है क्या ? नही देख सकते ।
गर्भ का जीव माता के दुख से दुखी व सुख से सुखी होता है । माता के स्वभाव की छाया गर्भ पर गिरती है । गर्भ मे से बाहर आने के बाद पुत्र-पुत्री का स्वभाव, आचार-विचार, आहार व्यवहार आदि सब माता के स्वभावानुसार होता है । इस पर माता-पिता के ऊच-नीच गर्भ की तथा यश-अपयश आदि की परीक्षा सन्तति रूप फोटू के ऊपर से विवेकी स्त्री पुरुष कर सकते है । कारण कि सन्तति रूप चित्र ( फोटू ) माता पिता की प्रकृति अनुसार खिचा हुआ होता है । माता धर्म ध्यान में, उपदेशश्रवण करने मे तथा दान-पुन्य करने मे और उत्तम भावना भावने में सलग्न होवे तो गर्भ भी वैसे ही विचार वाला होता है । यदि इस समय गर्भ का मरण होवे तो वह मर कर देवलोक मे जा सकता है । ऐसे ही यदि माता आर्त और रौद्र ध्यान मे होवे तो गर्भ भी आर्त और रौद्र ध्यानी होता है । इस समय गर्भ की मृत्यु होने पर वो नरक में जाता है । माता यदि उस समय महाकपट मे प्रवृत्त हो तो गर्भ उस समय मर कर तिर्यच गति
जाता है | माता महा भद्रिक तथा प्रपञ्च रहित विचारो मे लगी हुई होवे तो गर्भ मर कर मनुष्य गति मे जाता है एव गर्भ के अन्दर से ही जीव चारो गति मे जा सकता है। गर्भकाल जब पूर्ण होता है, तब माता तथा गर्भ की नाभी की विटी हुई रसहररणी नाड़ी खुल जाती है । जन्म होने के समय यदि माता और गर्भ के पुन्य तथा