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जैनागम स्तोक संग्रह, २ ३२ क्षेत्र द्वार : पांच नियंठा लोक के असंख्यातवे भाग में होवे और स्नातक लोक के असंख्यातवे होवे अथवा समस्त लोक में ( केवली समु० अपेक्षा होवे।
३३ स्पर्शना द्वार : क्षेत्र द्वार वत् ।
३४ भाव द्वार : प्रथम ४ नियठा क्षयोपशम भाव में होवे। निम्रन्थ उपशम तथा क्षायिक भाव में होवे और स्नातक क्षायिक भाव में होवे।
३५ परिमाण द्वार : ( सख्या प्रमाण ) स्यात् होवे, स्यात् न होवे, होवे तो कितना? नाम वर्तमान पर्याय अपेक्षा पूर्व पर्याय अपेक्षा जघन्य उत्कृष्ट
जघन्य उत्कृष्ट १-२-३ प्रत्येक सौ
१-२-३ प्रत्येक हजार (२०० से ६००)
(२ से १ हजार) बकुश
प्रत्येक सौ
क्रोड़ (नियमा) पंडिसेवण कषाय कुशील प्रत्येक हजार
प्रत्येक हजार
क्रोड़ , निर्गन्थ
१६२
१-२-३ प्रत्येक सो ० स्नातक
प्रत्येक कोड
नियमा ३६ अल्पबहुत्व द्वार :-सर्व से कम निग्रन्थ नियंठा, उनसे पुलाक वाले संख्यात गुणा, उनसे स्नातक संख्यात गुणा, उनसे वकुश संख्यात उनसे पडिसेवण संख्यात गुणा और उनसे कषाय कुशील का जीव सख्यात गुणा।
पुलाक