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जैनागम स्तोक सग्रह १४ अच्छीज्जे निर्बल पर दबाव डाल कर बलपूर्वक दिलावे वह। १५ अणिसिट्ठ-हिस्से की चीज मे से कोई देना चाहे, कोई नही
चाहे ऐसी वस्तु । . १६ अज्जोयर-गृहस्थ साधु निमित्त अपना आहार अधिक बनाया
हुआ होवे। १७ धाई दोष-गृहस्थ के बच्चो को खेला कर लिया हुआ। १८ दुई दोष-दूतिपना (समाचार आदि लाना व ले जाना)
करके लिया हुआ। १६ निमित्त-भूत व भविष्य का निमित्त कहकर लिया हुआ। २० आजीव-जाति, कुल आदि का गौरव बता कर लिया
हुआ। २१ वणीमग्ग-भिखारी समान दीनता से याचा (मांगा)
हुआ । २२ तिगछ-औषधि (दवा) आदि बता कर लिया हुआ। २३ कोहे-क्रोध करके, २४ माने-मान कर, २५ माये-कपट
करके, २६ लोभे-लोभ करके लिया हुआ। २७ पुव्वं पच्छ सथुव-पहले तथा बाद में देने वाले की स्तुति
करके लिया हुआ। २८ विज्जा-गृहस्थों को विद्या बता कर लिया हुआ। २६ मन्त्त-मन्त्र तन्त्र आदि वताकर लिया हुआ। ३० चुन्न-रसायन आदि (एक वस्तु में दूसरी वस्तु मिला कर
तीसरी वस्तु बनाना) सिखा कर लिया हुआ। ३१ जोगे-लेप, वशीकरण आदि बताकर लिया हुआ। ३२ मूल कर्म-गर्भपात आदि की दवा बता कर लिया हुआ।
उपरोक्त दोषो में से प्रथम १६ दोष “उद्गमन" अर्थात् भद्रिक श्रावक भक्ति के कारण अज्ञान साधुओं को लगाते है। पीछे के १६ दोष 'उत्पात' है। ये मुनि स्वयं लगा लेते है।