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साधु समाचारी
५०७ ६ अब्भुठणा : गुरु, रोगी, तपस्वी आदि की ग्लानता (घृणा) रहित वैयावच्च करे। १० उपसंपया जीवन पर्यन्त गुरुकुल वास करे (गुरु आज्ञानुसार विचरे)।
दिन कृत्य चार पहर दिन के और चार पहर रात्रि के होते है । दिन तथा रात्रि के चौथे भाग को पहर कहना।
(१) दिन निकलते ही प्रथम पहर के चौथे भाग मे सब उपकरणो __ का पडिलेहण करे, (२) तत्पश्चात् गुरु को पूछे कि मैं वैयावच्च
करूँ अथवा सज्झाय ? गुरु की आज्ञा मिलने पर वैसा ही १ पहर तक करे, (३) दूसरे पहर मे ध्यान (किये हुए स्वाध्याय का चितवन) करे, (४) तीसरे पहर मे गोचरी करे, प्रासुक आहार लाकर गुरु को बतावे, सविभाग करे और वड़ो को आमन्त्रित करके आहार करे, (५) चौथे पहर के ३ भाग तक स्वाध्याय करे, (६) चौथे भाग मे उपकरणो का पडिलेहण करे तथा परठाने की भूमि भी पडिलेहे, तत्पश्चात् (७) देवसी प्रतिक्रमण करे () आवश्यक करे )।
रात्रि कृत्य देवसी प्रतिक्रमण करने के बाद प्रथम पहर मे असज्झाय टाल कर स्वाध्याय करे। दूसरे पहर मे ध्यान करे, स्वाध्याय का अर्थ चितवे तत्पश्चात् निद्रा आवे तो तीसरे पहर मे सविधि यत्नपूर्वक सथारा-सस्तरी कर स्वल्प निद्रा लेकर चौथे पहर की शुरुआत मे उठे। निद्रा के दोष टालने के निमित्त काउसग्ग करे, पौन पहर तक स्वाध्याय सज्झाय करे। चौथे पहर मे चौथे (अन्तिम) भाग मे रायसि प्रतिक्रमण करे पश्चात् गुरु-वन्दन करके पच्चक्खाण करे।