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रात्रि-पहर देखने (जानने) की विधि
___ (श्री उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन २६) जिस काल के अन्दर जो-जो नक्षत्र समस्त रात्रि पूर्ण करता होवे व नक्षत्र के चौथे भाग में आता हो, उस समय ही पोरसी आती है। रात्रि की चौथी पोरसी चरम (अन्तिम) चौथे भाग को (दो घटी रात्रि को) पाउस (प्रभात) काल कहते है। इस समय सज्झाय से निवृत होकर प्रतिक्रमण करे । नक्षत्र निम्नलिखित अनुसार है -
श्रावण में-१४ दिन उत्तराषाढ़ा, ७ दिन अभिच, ८दिन श्रवण, १ दिन घनिष्टा ।
भाद्रपद में-१४ दिन धनिष्टा, ७ दिन शतभिखा, ८ दिन पूर्वा भाद्रपद, १ दिन उत्तरा भाद्रपद ।
आश्विन मे–१४ दिन उत्तरा भाद्रपद, १५ दिन रेवती, १ दिन अश्वनी।
कार्तिक में-१४ दिन अश्वनी, १५ दिन भरणी, १ दिन कृतिका।
मृगशर मे–१४ दिन कृतिका, १५ दिन रोहिणी, १ दिन मृगशर ।
पौष में- १४ दिन मृगशर, ८ दिन आर्द्रा, ७ दिन पुनर्वसु, १ दिन पुष्य।
माघ मे–१४ दिन पुष्य, १५ दिन अश्लेषा, १ दिन मघा।
फाल्गुन में-१४ दिन मघा, १५ दिन पूर्वा फाल्गुनी, १ दिन उत्तराफाल्गुनी ।
चैत्र में-१४ दिन उत्तराफाल्गुनी १५ दिन हस्ति, १ दिन चित्रा। वैशाख में-१४ दिन चित्रा, १५ दिन स्वाति, १ दिन विशाखा।
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