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अष्ट प्रवचन ( ५ समिति ३ गुप्ति)
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मागे, बैठते समय वोसिरे ३ बार कहे और बेठ कर आते समय निस्सही ३ बार कहे | जल्दी सूख जावे इस तरह वेठे |
गुप्ति के चार-चार भेद - १ द्रव्य से आरम्भ समारम्भ मे मन न प्रवर्तावे, २ क्षेत्र से समस्त लोक मे, ३ काल से जाव जीव तक, भाव से विषय कषाय, आर्त-रौद्र राग-द्वेष मे मन न प्रवर्तावे |
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वचन गुप्ति के ४ भेद :- - १ द्रव्य से― चार विकथा न करे, २ क्षेत्र से - समग्र लोक मे, ३ काल से - जाव जीव तक. ४ भाव से - सावद्य (राग द्वेषविषय कपाय युक्त) वचन न बोले ।
काया गुप्ति के ४ भेद - १ द्रव्य से - शरीर की सुश्रुपा (सेवा - शोभा) नही करे, २ क्षेत्र से - समस्त लोक मे, ३ काल से - जावजीव तक, ४ भाव से - सावद्य योग (पापकारी कार्य) न प्रवर्तावे ( न सेवन करे)