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५२ अनाचार
४६७ १७ दर्पण में अगोपाग निरखे तो अना० लागे । १८ चौपड, शतरज आदि खेल खेले तो अना० लागे १६ अर्थोपार्जन जुगार सट्टा आदि करे तो अना० लागे २० धूप आदि के निमित्त छत्री आदि रक्खे, तो अना० लागे .२१ वैद्यगिरी करके आजीविका चलावे तो अना० लागे २२ जूतिये, मोजे आदि पैरो मे पहिने तो अना० लागे २३ अग्निकाय आदि का आरम्भ (ताप आदि) करे तो अना०
लागे। २४ गृहस्थो के यहा गद्दी, तकियादि पर बैठे तो अना० लागे । २५ गृहस्थो के यहा पलग, खाट पर बैठे तो अना० लागे। २६ मकान की आज्ञा देने वाले के यहां से (शय्यान्तर) बहोरे
तो अनाचार लागे। २७ बिना कारण गृहस्थो के यहा बैठ कर कथादि करे तो अना
चार लागे। २८ विना कारण शरीर पर पोठी, मालिश आदि करे तो अना
चार लागे। २६ गृहस्थ लोगो की वैयावच्च (सेवा) आदि करे तो अनाचार
लागे। ३० अपनी जाति, कुल आदि बता कर ' आजीविका करे तो
अनाचार लागे। ३१ सचित्त पदार्थ लालोत्री, कच्चा पानी आदि भोगवे तो
अनाचार लागे। ३२ शरीर मे रोगादि होने पर गृहस्थो की सहायता लेवे तो
अनाचार लागे। ३३ मूला आदि सचित लोलोत्री, ३४ सेलडी के टुकडे, ३५ सचित ___कन्द, ३६ सचित मूल, ३७ सचित फल-फूल, ३८ सचित बीज
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