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जैनागम स्तोक सग्रह ४२ तथा ६६ दोष टाल कर निर्दोष आहार, पानी, वस्त्र, पात्र, मकानादि याचे (मांगे), क्षेत्र से २ गाउ (कोस) उपरान्त ले जाकर आहार पानी नही भोगे, काल से पहले पहर का आहार पानी चौथे पहर मे न भोगे, भाव से माडले के व दोष (सयोग, अङ्गाल, धम. परिमाण, कारण) टाल कर अनासक्तता से भोगे।।
४ आदानभण्डमत्त निखेवणीया समिति :-मुनियो के उपकरण ये है :-१ रजोहरण, समुहपत्ति एक चोल पट्टा (५ हाथ), ३ चादर (पछेड़ी) साध्वी, ४ पछेडी रक्खे । काष्ट तुम्बी तथा मिट्टी के पात्र, ' १ गुच्छा, १ आसन, १ सस्तारक (२॥ हाथ लम्बा बिछाने का कपडा तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्रा वृद्धि निमित्त आवश्यक वस्तुए।
(१) द्रव्य से ऊपर कहे हुए उपकरण यत्न से लेवे, रक्खे और वापरे (काम मे लेवे)।
(२) क्षेत्र से व्यवस्थित रक्खे, जहाँ-तहाँ बिखरे हुए नहीं रक्खे। .
(३) काल से दोनो समय (१ से और चौथे पहर में) पडिलेहन तथा पूजन करे।
(४) भाव से ममता रहित संयम साधन समझ कर भोगे। '
५ उच्चारपासवरण खेलजलसघाणपरिठावणिया समिति के '४ भेद .-१ द्रव्य मलमूत्रादि १० प्रकार के स्थान पर बैठे नही (१ जहाँ मनुष्यो का आवन-जावन हो, २ जीवो को जहाँ घात होवे, ३ विषम ऊँची-नीची भूमि पर, ४ पोली भूमि पर, ५ सचित्त भूमि पर, ६ संकडी (विशाल नही) भूमि पर, ७ तुरन्त को (अभी की) अचित्त भूमि पर, ८ नगर-गॉव के समीप मे, ६ लीलन फूलन होवे वहां, १० जीवो के बिल (दर) वहां न बैठे) । २ क्षेत्र से बस्ती को दुर्गछा होवे वहा तथा आम रास्ते पर न बैठे । ३ काल से बैठने को भूमि को कालोकाल पडिलेहण करे व पूँजे । ४ भाव से बैठने को निकले तब आवस्सही ३ वार कहे, बैठने के पहिले शक्रन्द महाराज की आज्ञा