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संजया ( संयति) ( श्री भगवती सूत्र शतक २५ उद्देशा ७ ) सयति पाँच प्रकार के (इनके ३६ द्वार नियंठा समान जानना)
१ सामायिक चारित्री, २ छेदोपस्थापनीय चारित्री, ३ परिहार विशुद्धि चारित्री, ४ सूक्ष्म सम्पराय चारित्री, ५ यथाख्यात चारित्री।
१ सामायिक चारित्री के २ भेद -१ स्वल्प काल का प्रथम और चरम तीर्थङ्कर के साधु होते है । ज० ७ दिन, मध्यम ४ मास (माह), उ० ६ माह की कच्ची दीक्षा वाले । २ जावजीव के-२२ तीर्थङ्कर के, महाविदेह क्षेत्र के और पक्की दीक्षा लिये हुए साधु (सामा० चारित्री)। "
छेदोपस्थापनीय (दूसरी वार नयो दीक्षा लिये हुए) सयति के २ भेद -१ सातिचार-पूर्व सयम मे दोष लगने से नई दीक्षा लेवे। २ निरतिचार-शासन तथा सम्प्रदाय बदल कर फिर दीक्षा लेवे। जैसे पार्श्वजिन के साधु महावीर प्रभु के शासन मे दीक्षा लेवे।
३ परिहारविशुद्ध चारित्री -६-६ वर्ष के नव जन दोक्षा ले । २० वर्ष गुरुकुल वास करके नव पूर्व सीखे, पश्चात् गुरु आज्ञा से विशेष गुण प्राप्ति के लिए नव ही साधु परिहार विशुद्ध चारित्र ले। जिनमे से चार मुनि ६ माह तक तप करे, ४ मुनि वैयावच्च करे और १ मुनि व्याख्यान देवे । दूसरे ६ माह मे ४ वैयावच्ची मुनि तप करे, ४ तप करने वाले वैयावच्च करे और १ मुनि व्याख्यान देवे । तीसरे ६ माह मे १ व्याख्यान देने वाला तप करे, १ व्याख्यान देवे और ७ मुनि वैयावच्च करे । तपश्चर्या उनाले मे एकातर उपवास, शियाले
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