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सजया (सयति) स्थविर, जिनकल्प ), सूक्ष्म० यथा० मे २ कल्प ( अस्थित और कल्पातीत ) पावे।
५ चारित्र द्वार-सामा०, छेदो० मे ४ नियंठा (पुलाक, वकुश, पडिसेवण और कषाय कुशील), परिशिष्ट सूक्ष्म मे एक नियठा (कषाय कुशोल) और यथा० मे २ नियठा (निर्गन्थ और स्नातक) पावे।
६ पडिसेवण द्वार-सामा०, छेदो०, सयति मूल गुण प्रति सेवी (महाव्रत मे दोष लगावे) तथा उत्तर गुण प्रतिसेवी (दोष लगावे) तथा अप्रति सेवी (दोष नही भी लगावे)। शेष ३ सयति अप्रतिसेवी (दोष नही लगावे)।
७ ज्ञान द्वार-४ संयति मे ४ ज्ञान (२-३-४) की भजना और यथाख्यात मे ५ ज्ञान की भजना । ज्ञानाभ्यास अपेक्षा-सामा०, छेदो० मे जघन्य अष्ट प्रवचन (५ समिति, ३ गुप्ति) उत्कृष्ट १४ पूर्व तक, परिशिष्ट मे जघन्य ६ वे पूर्व की तीसरी आचार वत्थु तक, उत्कृष्ट ६ पूर्व सम्पूर्ण सूक्ष्म सख्यात और यथा० जघन्य अष्ट प्रवचन तक उत्कृष्ट १४ पूर्व तथा सूत्र व्यतिरिक्त ।
८ तीर्थ द्वार-सामायिक और यथाख्यात संयति तीर्थ मे, अतीर्थ मे, तीर्थकर मे और प्रत्येक बुद्ध में होवे । छेदो०, परि०, सूक्ष्म तीर्थ मे ही होवे ।
लिग द्वार-परि० द्रव्ये भावे स्वलिंगी होवे । शेष चार सयति द्रव्य स्वलिगी, अन्य लिंगी तथा गृहस्थ लिगी होवे, परन्तु भावे स्वलिगी होव।
१० शरीर द्वार–सामायिक, छेदो० मे ३-४-५ शरीर होवे । शेप तीन मे ३ शरीर।
११ क्षेत्र द्वार—सामायिक, सूक्ष्म तथा १५ कर्म भूमि मे और छेदो० परि० ५ भरत ५ ऐरावत मे होवे, सहरण अपेक्षा अकर्म भूमि मे भी होवे, परन्तु परिहार विशुद्ध संयति का सहरण नही होवे।