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पांच देव (भगवती सूत्र, शतक १२ उद्देश ६) गाथा - नाम गुण उवाए, ठी वीयु चवण सचीठणा,
अन्तर अप्पा बहुय च, नव भेए देव दाराए ।।१।। १ नाम द्वार, २ गुण द्वार, ३ उववाय द्वार, ४ स्थिति द्वार ५ रिद्धि तथा विकुर्वणा द्वार ६ चवन द्वार ७ सचिठण द्वार ८ अन्तर द्वार ६ अल्प बहुत्व द्वार ।
१ नाम द्वार १ भविय द्रव्य देव, २ नर देव, ३ धर्म देव, ४ देवाधि देव, __५ भाव देव।
२ गुण द्वार मनुष्य तथा तिर्यच पचेन्द्रिय मे से जो देवता मे उत्पन्न होने वाले है उन्हे भविय देव कहते है। २ चक्रवर्ती को ऋद्धि भोगने वालो को नर देव कहते है। चक्रवर्ती की रिद्धि का वर्णन :___ नव निधान, चौदह रत्न, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख घोडे, चौरासी लाख रथ, छन्नु क्रोड पैदल, बत्तीस हजार मुकुटबन्ध राजे, बत्तीस हजार सामानिक राजे, सोलह हजार देवता सेवक, चौसठ हजार स्त्री, तीन सौ साठ रसोइये, बीस हजार सोना के आगर आदि ।
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