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जैनागम स्तोक संग्रह का विनय करे (७) कुल (बहुत आचार्यों के शिष्यों का समूह) का विनय करे (८) स्वधर्मी का विनय करे (९) सघ का विनय करे (१०) संभोगी का विनय करे एव दश का बहुमान पूर्वक विनय करे । जैन शासन मे विनय मूल धर्म कहते है । विनय करने से अनेक सद्गुणो की प्राप्ति होती है। ____४, शुद्धता के तीन भेद :-(१) मन शुद्धता-मन से अरिहत-देवकि जो ३४ अतिशय, ३५ वाणी, ८ महा प्रतिहार्य सहित, १८ दूषण रहित १२ गुण सहित है वे ही अमर व सच्चे देव है। इनके सिवाय हजारों कष्ट पड़े तो भी सरागी देवो को मन से स्मरण नही करे (२) वचन शुद्धता-वचन से गुण कीर्तन, ऐसे अरिहंत देव के करे व इनके सिवाय सरागी देवों का नही करे। (३) काया शुद्धता-काया से अरिहंत सिवाय अन्य सरागी देवो को नमस्कार नही करे।
५, लक्षण के पांच भेद :-(१) सम-शत्रु मित्र पर समभाव रक्ख (२) सवेग-वैराग्य भाव रक्खे और संसार असार है, विषय व कषाय से अनन्त काल पर्यन्त भवभ्रमण होता है, इस भव मे अच्छी सामग्री मिली है अतः धर्म की आराधना करनी चाहिए, इत्यादि नित्य चितन करे (३) निर्वेद -शरीर अथवा संसार की अनित्यता पर चिंतन करे और वने वहां तक इस मोहमय जगत से अलग रहे अथवा जग-तारक जिनराज को दीक्षा लेकर कर्म शत्रुओ को जीते व सिद्ध पद को प्राप्त करने की हमेशा अभिलाषा (भावना) रक्खे, (४) अनुकम्पा-अपनी तथा पर की आत्मा की अनुकम्पा करे अथवा दुखी जीवों पर दया लावे (५) आस्था-त्रिलोक पूज्यनीक श्रीवीतराग देव के वचनो पर दृढ श्रद्धा रक्खे, हिताहित का विचार करे अथवा अस्तित्व भाव मे रमण करे ये ही व्यवहार समकित के लक्षण है। अत: जिस विषय मे अपूर्णता होवे उसे पूरी करे।
६, भूपण पांच-(१) जैन शासन में धैर्यवन्त होकर शासन का प्रत्येक कार्य धैर्यता से करे (२) जैन शासन का भक्तिवान् होवे (३)