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वकुश-खले में गिरी हुई शालवत् । इसके ५ भेद :-१ आभोग (जान कर दोष लगावे, २ अनाभोग (अजानता दोष लगे), ३ सबुडा (गुप्त दोष लगे), ४ असबुडा प्रकट दोष लगे, ५ अहासुहम्म (हाथमुंह धोवे, कज्जल आजे इत्यादि)।
पडिसेवण -शाल के उफने हुए खले के समान । इसके ५ भेद .१ ज्ञान, २ दर्शन, ३ चारित्र में अतिचार लगावे, ४ लिंग बदले, ५ तप करके देवादि की पदवी की इच्छा करे ।
कषाय कुशील-फोतरे वाली, कचरे बिना की शाल समान, इसके ५ भेद -१ ज्ञान, २ दर्शन, ३ चारित्र मे कषाय करे, ४ कपाय करके लिग बदले, ५ तप करके कषाय करे ।
निग्रंथ-फोतरे निकाली हुई व खण्डी हुई शालवत्, इसके ५ भेद भेद :-१ प्रथम समय निर्ग्रन्थ (दशवे गुण ० से ११ वे तथा १२ वे गुण० पर चढता प्रथम समय का) २ अप्रथम समय निर्गन्थ (१६-१२ गुण० मे दो समय से अधिक हुआ हो), ३ चरम समय (एक समय छमस्थापन का बाकी रहा हो), ४ अचरम समय (दो समय से अधिक समय जिसकी छद्मस्थ अवस्था बाकी बची हो) और ५ अहासुम्म निग्रन्थ (सामान्य प्रकारे वर्ते।
स्नातक शुद्ध, अखण्ड, चावल समान। इसके ५ भेद .-१ अच्छवी (योग निरोध), २ असबले (सबले दोष रहित), ३ अकस्मे (घातिक कर्म रहित), ४ सशुद्ध (केवली) और ५ अपरिस्सवी (अवन्धक)।
२ वेद द्वार -१पुलाक पुरुष वेदी और नपु सक वेदी, २वकुश पु० स्त्री नपु सक वेदी, ३ पडिसेवणा- तीन वेदी, ४ कषाय कुशीलतीन वेदी और अवेदी (उपशात तथा क्षीण), ५ निन्थ अवेदी (उपशांत तथा क्षीण) और स्नातक क्षीण अवेदी होवे ।
३ राग द्वार :--४ निर्ग्रन्थ सरागी, निर्ग्रन्थ पाँचवॉ) वीतरागी (उपशांत तथा क्षीण) और स्नातक क्षीण वीतरागी होवे ।