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नियठा
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७ ज्ञान द्वार -पुलाक, वकुश, पडिसेवणा नियठा में दो ज्ञान तथा तीन ज्ञान, कपाय, कुशील और निर्ग्रन्थ में २, ३, ४ ज्ञान और स्नातक मे केवल ज्ञान । श्रत ज्ञान आश्री पुलाक के ज० ६ पूर्व न्यून, उ० ६ पूर्व पूर्ण, वकुश और पडिसेवणा के ज० ८ प्रवचन । उ० दश पूर्व कपाय कुशील तथा निर्ग्रन्थ के ज० ८ प्रवचन । उ० १४ पूर्व स्नातक सूत्र व्यतिरिक्त ।
८ तीर्थ द्वार -पुलाक, वकुश, पडिसेवणा तीर्थ मे होवे । शेष तीन तीर्थ में और अतीर्थ मे होवे । अतीर्थ मे प्रत्येक बुद्ध आदि होवे ।
लिङ्ग द्वार .-ये ६ नियठा (साधु) द्रव्य लिग अपेक्षा स्वलिग, अन्य लिग अपेक्षा गृहस्थ लिंग मे होवे । भावापेक्षा स्वलिग ही होवे।
१० शरीर द्वार पुलाक, निर्गथ स्नातक मे ३ ( औ० ते० का०), वकुश पडि० मे ४ ( औ० वै० तै० का० ), कषाय कुशील मे ५ शरीर ।
११ क्षेत्र द्वार : नियठा जन्म अपेक्षा १५ कर्म भूमि मे होवे, सहरण अपेक्षा ५ नियठा ( पुलाक सिवाय ) कर्म-भूमि और अकर्मभूमि मे होवे । प्रसगोपात पुलाक लब्धि आहारक शरीर, साध्वी, अप्रमादी, उपशम श्रेणो वाले, क्षपक श्रेणी वाले और केवली होने से बाद सहरण नही हो सके ।
१२ काल द्वार पुलाक निर्ग्रन्थ और स्नातक अवस० काल मे तीसरे-चौथे आरे मे जन्मे और ३, ४ ५ वे आरे मे प्रवर्त। उत्स० काल मे २, ३, ४ आरे में जन्मे और ३-४ थे आरे मे प्रवर्ते । महा विदेह मे सदा होवे।
पुलाक का सहरण नही होवे, परन्तु निग्रंथ, स्नातक सहरण अपेक्षा अन्य काल मे भी होवे । वकुश पडिसेवण और कपाय कुशील अवस० काल के ३, ४, ५ आरे मे जन्मे और प्रवर्ते। उत्स० काल के २, ३, ४ आरे में जन्मे और ३-४ आरे मे प्र० । महाविदेह मे सदा होवे।