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नियंठा ( श्री भगवती सूत्र शतक २५ उद्देशा छठा )
निर्ग्रन्थों पर ३६ द्वार १ पन्नवणा (प्ररूपणा), १ वेद, ३ राग, (सरागी), ४ कल्प, ५ चारित्र, ६ पडिसेवना (दोष सेवन), ७ ज्ञान, ८ तीर्थ : लिग, १० शरीर, ११ क्षेत्र, १२ काल, १३ गति, १४ संयम स्थान, १५ (निकासे) चारित्र पर्याय, १६ योग, १७ उपयोग, १८ कषाय, १६ लेश्या, २० परिणाम (३), २१ बन्ध, २२ वेद, २३ उदीरणा, २४ उपसम्पझाण (कहां जावे ? ), २५ सन्नाबहुत्ता, २६ आहार, २७ भव, २८ आगरेस (कितनी बार आवे ? ) २६ कालस्थिति, ३० आन्तरा, ३१ समुद्घात, ३२ क्षेत्र (विस्तार) ३३ स्पर्शना, ३४ भाव, ३५ परिणाम (कितने पावे ?) व ३६ अल्पबहुत्व द्वार ।
१ पन्नवणा द्वार :-निर्गन्थ (साधु) ६ प्रकार के प्ररूपे गये है। यथा १ पुलाक, २ वकुश ३ पडिसेवणा (ना), ४ कषाय कुशील, ५ निग्रंथ, ६ स्नातक। ___१ पुलाक-चावल की शाल समान, जिसमें सार वस्तु कम और भूसा विशेष होता है । इसके दो भेद : १ लब्धि पुलाक-कोई चक्रवर्ती आदि किसी जैन मुनि की अथवा जिन शासन आदि की अशातना करे, तो उसकी सेना आदि को चकचूर करने के लिये लब्धि का प्रयोग करे, उसे लब्धि पुलाक कहते है। ___२ चारित्र पुलाक, इसके ५ भेद :- ज्ञान पुलाक, दर्शन पुलाक, चारित्र पुलाक, लिंग पुलाक (अकारण लिग-वेष वदले) और अह सुहम्म पुलाक (मन से भी अकल्पनीय वस्तु भोगने की इच्छा करे)।
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