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योगों का अल्पबहुत्व (श्री भगवती सूत्र शतक २५ उद्देश १ में ) जीव के आत्म प्रदेशों मे अध्यवसाय उत्पन्न होते है । अध्यवसाय से जीव शुभाशुभ कर्म ( पुद्गल ) को ग्रहण करता है यह परिणाम है और यह सूक्ष्म है। परिणामो की प्रेरणा से लेश्या होती है। और लेश्या की प्रेरणा से मन, वचन, काय का योग होता है।
योग दो प्रकार का। १ जघन्य योग-१४ जीवो के भेद मे सामान्य योग सचार । २ उत्कृष्ट योग, ( तारतम्यता) अनुसार उनका अल्पबहुत्व नीचे अनुसार(१) सब से कम सूक्ष्म एकेन्द्रिय का अपर्याप्ता का जघन्य योग
उनसे (२) बादर ऐकेन्द्रिय का अपर्याप्ता का ज० योग अस० गुण , (३) बे इन्द्रिय (४) ते इन्द्रिय (५) चौरिन्द्रिय (६ ) असज्ञी पचेन्द्रिय का। (७) सज्ञो , (८) सूक्ष्म एकेन्द्रिय का पर्याप्ता का (६) बादर , ( १० ) सूक्ष्म , अपर्याप्ता का उ० योग (११) बादर , (१४) सूक्ष्म , पर्याप्ता का (१३) वादर , "
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