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ज० विरह पड़े तिर्यंच में १२ दैवलोक
विरह पद ( श्री पन्नवणा सूत्र, ६ ठा० पद ) ज. विरह पड़े १ समय का, उ० विरह पड़े तो समुच्च ४ गति, सज्ञी मनुष्य और सज्ञी तिर्यंच में १२ मुहूर्त का १ ली नरक, १० भवनपति वाणव्यन्तर, ज्योतिषी, १-२ देवलोक और असज्ञी मनुष्य मे २४ मुहूर्त का दूसरी नरक मे ७ दिन का, तीसरी नरक मे १५ दिन का, चौथी नरक मे १ माह का, पांचवी नरक मे २ माह का, छट्ठी मे ४ माह का और सातवी नरक मे सिद्ध गति तथा ६४ इन्द्रो मे विरह पड़े तो ६ माह का। तीसरे देवलोक मे ६ दिन २० मुहूर्त का, चौथे देवलोक मे १२ दिन १० मु० पाचवे , २२ , १५ , छट्टे , ४५ - ६ मु० सातवे ८० , का आठवें , १०० । 8-१०, सेकडो माह का ११-१२ , सेकड़ो वर्षों का १ ली त्रिक मे स० सैकडो वर्षों का, दूसरी त्रिक मे स० हजारो वर्षों का तीसरी , , " चार अनुत्तर विमान मे पल्य के असख्यातवें भाग का और सर्वार्थसिद्ध मे पल्य से सख्यातवे भाग का विरह पडे ।
५ स्थावर मे विरह नही पडे, ३ विकलेन्द्रिय और असज्ञी तिर्यच से अन्तर्मुहूर्त का विरह पड़े, चन्द्र सूर्य ग्रहण का विरह पड़े तो ज० ६ माह का उ० चन्द्र का ४२ माह का और सूर्य का ४८ वर्ष का पड़े भरत क्षेत्र मे साधु साध्वी, श्रावक श्राविका का विरह पड़े तो ज० ६३ हजार वर्ष का और अरिहत, चक्रवर्ती, वासुदेव- बलदेवो का ज० ४८ हजार वर्ष का- उ० देश उणा १८ क्रोडा-क्रोड़ सागरोपम का विरह पडे।
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