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जैनागम स्तोक संग्रह
, , आकाशा०, , ,,? ज.७ प्र. उ. ७. , ,, ,, जीवपुद्गल ,, ,, ,, ? अनंत प्रदेशो का स्पर्श ,, , काल द्रव्य,,, ,, ? स्यात् अनन्त स्पर्श
स्यात् नहीं एवं अधर्मा० प्रदेश स्पर्शना समझना। आकाश० का १ प्रदेश धर्मा० का ज० १-२-३ प्रदेश उ० ७ प्रदेश को स्पर्श. शेष प्रदेश स्पर्शना धर्मास्ति-कायवत् जानना। जीव की १ प्रदेश धर्मा० काल. ४ उ. ७ प्रदेश को स्पर्श, पुद्गल० , , , ,
(शेष प्र० स्पर्शना काल द्रव्य एक समय , प्रदेश को स्यात स्पर्श (धर्मास्ति'काय वत्
स्यात् नहीं पुद्गल० के २ प्रदेश , ज० दुगणा से दो अधिक (६) प्रदेश को स्पर्श और उ० पाच गुणे से २ अधिक ५४२=१०+२=१२ प्रदेश
स्पर्श इसी प्रकार ३-४-५ जीव अनन्त प्रदेश ज० दुगणे से २ अधिक उ० पांच गुणे से २ अधिक प्रदेश को स्पर्श।
३१ अल्पबहुत्व द्वार : द्रव्य अपेक्षा-धर्म, अधर्म आकाश परस्पर तुल्य है, उनसे जीव द्रव्य अनन्त गुणा, उनसे पुद्गल अनन्त गुणा और उनसे काल अनन्त ।
प्रदेश अपेक्षा–सर्व से कम धर्म अधर्म का प्रदेश, उनसे जीव के प्र० अनन्त गुणा, उनसे पुद्गल के प्र० अनन्त गुणा, उनसे काल द्रव्य के अ० गुणा, उनसे आकाश प्र० अ० गुणा ।
द्रव्य और प्रदेश का एक साथ अल्पबहत्व :-सब से कम धम, अधर्म, आकाश के द्रव्य, उनसे धर्म अधर्म के प्रदेश असं० गुणा। उनके जीव द्रव्य अनं० उनसे जीव के प्रदेश असं० पुद्गल द्रव्य अन० उनसे पु० प्रदेश असं०, उनसे काल के द्रव्य प्रदेश अनं० उनसे आकाश प्र० अनन्त गुणा।