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जैनागम स्तोक संग्रह
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अकेलेपन ( एकत्व ) का विचार । २
अकेला जायगा एवं जीव के अणिच्चा पेहा संसार की अनित्यता का विचार । ३ असरणाणु पेहा - ससार में कोई किसी को शरण देने वाला नही, इसका विचार और ४ ससाराणुपेहा -- ससार की स्थिति ( दशा) का विचार करना ।
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शुक्ल ध्यान के ४ पाये १ एक-एक द्रव्य में भिन्न-भिन्न अनेक पर्याय - उपन्न वा, विगमेइवा, धुवेवा आदि भावों का विचार करना । २ अनेक द्रव्यो मे एक भाव ( अगुरु लघु ) का विचार करना । ३ अचलावस्था में तीनों ही योगों का निरोध करना ( रोकना) । ३ चौदहवे गुणस्थानक की सूक्ष्म क्रिया से भी निवर्तन होने का चितवना ।।
शुक्ल ध्यान के ४ लक्षण : १ देवादि के उपसर्ग से चलित न होवे २ सूक्ष्म भाव ( धर्म का ) सुन ग्लानि न लावे. ३ शरीर आत्मा को भिन्न २ चितवे और ४ शरीर को अनित्य समझ कर व पुद्गल को पर वस्तु जान कर इनका त्याग करे ।
शुक्ल ध्यान के ४ अवलम्बन १ क्षमा, २ निर्लोभता, ३ निष्कपटता, ४ मदरहितता ।
शुक्ल ध्यान की ४ अनुप्रेक्षा : १ जीव ने अनंत बार ससार भ्रमण किया है ऐसा विचारे, २ संसार की समस्त पौद्गलिक वस्तु अनित्य है, शुभ पुद्गल अशुभ रूप से और अशुभ शुभ रूप से परिणमते, है, अत शुभाशुभ पुद्गलों में आसक्त वन कर राग-द्वेष न करना ३ ससार परिभ्रमण का मूल कारण शुभाशुभ कर्म है । कर्म बन्ध का मूल कारण ४ हेतु है ऐसा विचारे, ४ कर्म हेतुओ को छोड़ कर स्वसत्ता मे रमरण करने का विचार करना । ऐसे विचारो में तन्मय (एक रूप ) हो जाने को शुक्ल ध्यान कहते है |