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जौनागम स्तोक सग्रह २० एक द्वार :-धर्म, अधर्म, आकाश एकेक द्रव्य है। शेष ३ अनन्त है।
२१ क्षेत्र-क्षेत्री द्वार :--आकाश क्षेत्र है। शेष क्षेत्री है ।अर्थात् प्रत्येक लोकाकाश प्रदेश पर पॉचों ही द्रव्य अपनी २ क्रिया करते हुए भी एक दूसरे में नही मिलते ।
२२ क्रिया द्वार :-निश्चय से सर्व द्रव्य अपनी २ क्रिया करते है। व्यवहार से जीव और पुद्गल क्रिया करते है। शेष अक्रिय है।
२३ नित्य द्वार :--द्रव्यास्तिक नय से सब द्रव्य नित्य है । पर्याय अपेक्षा से सब अनित्य है । व्यवहार नय से जीव, पुद्गल अनित्य है शेष ४ द्रव्य नित्य है। __ २४ कारण द्वार ,-पाँचो ही द्रव्य जीव के कारण है । परन्तु जीव किसी के कारण नहीं । जैसे-जीव कर्त्ता और धर्मा० कारण मिलने से जीव को चलन कार्य की प्राप्ति होवे । इसी प्रकार दूसरे द्रव्यभी समझना। __ २५ कर्ता द्वार :-निश्चय से समस्त द्रव्य अपने २ स्वभाव कार्य के कर्ता है । व्यवहार से जीव और पुद्गल कर्ता है। शेष अकर्ता है।
२६ गति द्वार :--आकाश की गति (व्यापकता) लोकालोक मे है शेष की लोक मे है।
२७ प्रवेश द्वार :-एक २ आकाश प्रदेश पर पाचो ही द्रव्यो का प्रवेश है । वे अपनी २ क्रिया करते जा रहे है । तो भी एक दूसरे से मिलते नही जैसे एक नगर मे ५ मानव अपने २ कार्य करते रहने पर भी एक रूप नही हो जाते है।
२८ पृच्छा द्वार :-श्री गौतम स्वामी श्री वीर को सविनय निम्नलिखित प्रश्न पूछते है।
१ धर्मा० के १ प्रदेश को धर्मा० कहते है क्या ? उत्तर-नही. (एवभूत नयापेक्षा) धर्मा० काय के १-२-३, लेकर सख्यात असंख्यात प्रदेश,