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मार्गानुसारी के ३५ गुण १ न्याय सम्पन्न द्रव्य प्राप्त करे, २ सात कुव्यसन का त्याग करे, ३ अभक्ष्य का त्यागी होवे, ४ गुरण परीक्षा से सम्बन्ध (लग्न) जोड, ५ पाप-भीरु ६ देश हित कर बर्तन वाला, ७ पर निन्दा का त्यागी, ८ अति प्रकट, अति गुप्त तथा अनेक द्वार वाले मकान मे न रहे, ६ सद्गुणी की संगति करे, १० बुद्धि के आठ गुणो का धारक, ११ कदाग्रही न होवे (सरल होवे), १२ सेवाभावी होवे, १३ विनयी, १४ भय स्थान त्यागे, १५ आय व्यय का हिसाब रक्खे, १६ उचित (सभ्य) वस्त्राभूषण पहिने, १७ स्वाध्याय करे (नित्य नियमित धार्मिक वाचन श्रवण करे), १८ अजीर्ण मे भोजन न करे, १६ योग्य समय पर (भूख लगने पर मित, पथ्य नियमित) भोजन करे, २० समय का सदुपयोग करे, २१ तीन पुरुषार्थ (धर्म अर्थ काम) मे विवेकी, २२ समयज्ञ (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का ज्ञाता) होवे, २३ शात प्रकृति वाला, २४ ब्रह्मचर्य को ध्येय समझने वाला, २५ सत्यव्रत धारी, २६ दीर्घदर्शी, २७ दयालु, २८ परोपकारी, २६ कृतघ्न न होकर कृतज्ञ होवे, (अपकारी पर भी उपकार करे, ३० आत्म प्रशसा न इच्छे, न करे न करावे, ३१ विवेकी (योग्यायोग्य का भेद समझने वाला) होवे, ३२ लज्जावान होवे, ३३ धैर्यवान होवे ३४ षड्पुि (क्रोध, मान, माया लोभ, राग, द्वेष) का नाश करे, ३५ इन्द्रियो को जीते (जितेन्द्रिय होवे)।
इन ३५ गुणो को धारण करने वाला ही नैतिक धार्मिक जैन जीवन के योग्य हो सकता है ।