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तीर्थंकर गोत्र (नाम) बान्धने के २० काररा १ श्री अरिहंत भगवान् के गुण कीर्तन करने से । २ श्री सिद्ध भगवान के गुण कीर्तन करने से । ३ आठ प्रवचन (५ समिति, ३ गुप्ति) का आराधन करने से । ४ गुणवन्त गुरु के गुण कीर्तन करने से । ५ स्थविर (वृद्ध मुनि) के गुण कीर्तन करने से । ६ बहुश्रु त के गुण कीर्तन करने से। ७ तपस्वी के गुण कीर्तन करने से । ८ सीखे हुए ज्ञान को वारम्बार चितवने से । ६ समकित निर्मल पालने से । १० विनय ( ७-१०-१३४ प्रकार के ) करने से । ११ समय-समय पर आवश्यक करने से। १२ लिये हुए व्रत प्रत्याख्यान निर्मल पालने से । १३ शुभ (धर्म-शुक्ल) ध्यान देने से । १४ वाहर प्रकार की निर्जरा (तप) करने से । १५ दान (अभय दान, सुपात्र दान) देने से । १६ वैयावृत्य ( १० प्रकार की सेवा ) करने से । १७ चतुर्विध सघ को शांति-समाधि ( सेवा-शोभा ) देने से । १८ नया-नया अपूर्व तत्त्व ज्ञान पढने से। १६ सूत्र सिद्धांत की भक्ति ( सेवा । करने से। २० मिथ्यात्व नाश और समकित उद्योग करने से ।
जीव अनन्तान्त कर्मो को खपाते है। इन सत्कार्यों को करते हुए उत्कृष्ट रसायण ( भावना ) आवे तो तीर्थङ्कर गोत्र कर्म वांधे।
श्री ज्ञाता सूत्र आठवा अध्ययन
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