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जीवो की मार्गणा
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पाच स्थावर देवता और नारकी की योनि एक सवुडा, तीन विकलेद्रिय, समुच्चय तिर्यच और मनुष्य मे तीनो ही योनि पावे । सज्ञी तिर्यच और सज्ञी मनुष्य मे योनि एक संवुडा, वियडा । इनका अल्पवहुत्व-सर्व से कम सवुडावियडा उनसे वियडा योनियां असंख्यात गुणा । उनसे सवुडा योनियां अनन्त गुणा । योनि तीन प्रकार की है सखा अर्थात् शख के आकार समान । कच्छा याने कछये के आकार समान और वंश पत्ता कहेता वास के पत्र के समान । चक्रवर्ती की स्री रत्न की योनि शख वत् । ऐसी योनि वाली स्त्री के संतान नही होती। ५४ शलाका पुरुष की माता की योनि काचबे ( कछुवा ) के आकार समान होवे और सर्व मनुष्यो की माता की योनि बास के पत्र के आकार समान होती है।
आठ आत्मा का विचार शिष्य पूछता है कि हे भगवन् ! सग्रह नय के मत से आत्मा एक ही स्वरूपी कहने मे आया है जब कि अन्य मत से आत्मा के भिन्न २ प्रकार कहे जाते है । क्या आत्मा के अलग २ भेद है ? यदि होवे तो कितने ? ____ गुरु-हे शिष्य! भगवतीजी का अभिप्राय देखते आत्मा तो आत्मा ही है, वह आत्मा स्वशक्ति के कारण एक ही रीति से एक ही स्वरूपी है समान प्रदेशी और समान गुणी है अत निश्चय से एक ही भेद कहने मे आता है परन्तु व्यवहार नय के मत से कितने कारणो से आत्मा आठ मानी जाती है। जैसे -१ द्रव्य आत्मा २ कषाय आत्मा ३ योग आत्मा ४ उपयोग आत्मा ५ ज्ञान आत्मा ६ दर्शन आत्मा ७ चारित्र आत्मा ८ वीर्य आत्मा । एव आठ गुणो के कारण से आत्मा आठ कहलाती है और एक दूसरी के साथ मिल जाने से इस के अनेक विकल्प भेद होते है जैसा कि आगे के यन्त्र मे वताया गया है।
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