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योनि पद
( सूत्र श्री पन्नवणाजी पद नववा )
योनि तीन प्रकार की -- शीत योनि, उष्ण योनि शीतोष्ण योनि ।
विस्तार - पहली नरक से तीसरी नरक तक शीत योनियां, चौथी नरक मे शीत योनियां विशेप और उष्ण योनिया कम । पाचवी नरक में उष्ण योनियां विशेष और शीत योनियां कम । छट्ठी नरक में उष्ण योनियां | सातवी नरक मे महा उष्ण योनियां अग्नि छोड़ कर चार स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, समुच्चय तिर्यच और मनुप्य में तीन योनि मिले ते काय में एक उष्ण योनि संज्ञी तिर्यच सज्ञी मनुष्य और देवता में एक शीतोष्ण योनियां ।
इनका अल्पवहुत्व — सर्व से कम शीतोष्ण योनियां, उन से अयोनिया सिद्ध भगवन्त अनन्त गुणा उन से शोत योनियां अनत गुणा । योनि तोन प्रकार की होती है सचित्त, अचित्त, मिश्र । नारकी और देवता मे योनि एक अचित । पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय समुच्चय तिर्यंच और समुच्चय मनुष्य मे योनि तीन ही मिलती है संजी तिर्यच और संज्ञी मनुष्य मे योनि एक मिश्र । इनका अल्पबहुत्व :- सर्व से कम मिश्र योनियां उससे अचित योनिया असख्यात गुणा और उससे सचित योनियां अनत गुणा । योनि तीन प्रकार की संवडा, विडा और संडा - विड़ा अर्थात् सबुडा ढंकी हुई वियड़ा याने खुली ( उघाडी ) हुई और सबुड़ा वियड़ा याने कुछ ढकी हुई और कुछ खुली हुई ।
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