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जैमागम स्तोक सग्रह
इनको दुखो का कारण जानकर आश्रव मार्ग का त्याग करे व संवर मार्ग को आदरे, जिससे जीव को दुख नही होवे ।
विवाग विजए :-जीव को किस प्रकार सुख-दुख की प्राप्ति होती है अर्थात् वह इन्हे किस प्रकार भोगता है, इसपर चितन व मनन करे । जीव जिससे रस के द्वारा जैसे शुभाशुभ ज्ञानावरणीयादिक कर्मो का उपार्जन किया है वैसे ही शुभाशुभ कमों के उदय से जीव सुख-दुख का अनुभव करता है । सुख-दुख अनुभव करते समय किसी पर राग-द्वेष नही करना चाहिये, किन्तु समता भाव रखना चाहिय । मन, वचन, काया के शुभ योग सहित जैन धर्म के अन्दर प्रवृत्त होना चाहिये, जिससे जीव को निराबाध परम सुख की प्राप्ति होवे। ____संठाण विजए .-तीनों लोको के आकार का स्वरूप चितवे । लोक का स्वरूप इस प्रकार है :-यह लोक सुपइठक के आकारवत् है। जीव-अजीवो से समग्र भरा हुआ है। असख्यात योजन का क्रोडाक्रोड़ प्रमाणे तीर्छा लोक है, जिसके अन्दर असं० द्वीप समुद्र है, असं० वारणब्यन्तर के नगर है, असं० ज्योतिषी के विमान है तथा अस० ज्योतिषी की राजधानिये है। इसमें अढाई द्वीप के अन्दर तीर्थकर जघन्य २०, उत्कृष्ट १७०, केवली ज० दो क्रोड़, उ० नव क्रोड तथा साधु ज० दो हजार कोड़, उ० नव हजार क्रोड होते हैजिन्हे वदामि, नमसामि, सक्कोरमि समाणेमि कल्लाण, मंगलं देवय, चेइयं, पजुवास्सामि। तीर्छ लोक में असख्याते श्रावक-श्राविका है, उनके गुण ग्राम करना चाहिये । तीर्छ लोक से असं० गुणा अधिक ऊर्ध्व लोक है, जिसमें बारह देवलोक, नव वेयक, पाँच अनुत्तर विमान एवं सर्व मिलाकर चोरासी लाख, सत्ताणु हजार तेवीस विमान है। इनके ऊपर सिद्ध शिला है, जहा पर सिद्ध भगवान विराजमान है। उन्हे वंदामि जाव पजुवास्सामि । ऊर्ध्वलोक से नीचे अधोलोक है,