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तीन जाग्रिका (जागरण)
दया धर्म के भेद -दया धर्म के आठ भेद –१ स्वदया अर्थात् अपनी आत्मा को पाप से बचावे २ पर दया याने अन्य जीवो की रक्षा करे ३ द्रव्य दया याने देखादेखी दया पाले अथवा लज्जा से जीव की रक्षा करे तथा कुल आचार से दया पाले ४ भाव दया अर्थात् ज्ञान के द्वारा जीव को आत्मा जान कर उस पर अनुकम्पा लावे व दया लाकर जीव की रक्षा करे ५ व्यवहार दया श्रावक को जैसी दया पालने के लिए कहा है वह पाले घर के अनेक काम काज करने के समय यतना रक्खे ६ निश्चय दया याने अपनी आत्मा को कर्म-बन्ध से छुडावे ।
विवेचन :-पुद्गल पर वस्तु है। इनके ऊपर से ममता हटा कर उसका परिचय छोडे, अपने आत्मिक गुण मे लीन रहे, जीव का कर्म रहित शुद्ध स्वरूप प्रगट करे, यह निश्चय दया है । चौदह गुणस्थानक के अन्त मे यह दया पाई जाती है। ७ स्वरूप दया-अर्थात् किसी जीव को मारने के लिये उस को ( जीव को ) पहिले अच्छी तरह से खिलाते है व शरीर पुष्ट करते है, सार सभाल लेते है । यह दया ऊपर दिखावा मात्र है। परन्तु पीछे से उस जीव को मारने के परिणाम है । यह उत्तराध्यान सूत्र के सातवे अध्ययन मे बकरे के अधिकार से समझना । ८ अनुबन्ध दया-वह जीव को त्रास देवे परन्तु अन्तर्ह दय से उसको सुख देने की भावना है । जैसे माता पुत्र का रोग दूर करने के लिये कटुक औषधि पिलाती है परन्तु हृदय से उसका हित चाहती है । तथा जैसे पिता पुत्र को हित शिक्षा देने के लिये ऊपर से तर्जना करे, मारे परन्तु हृदय से उसको सद्गुणी बनाने के लिये उसका हित चाहता है। ___ स्वभाव धर्म -जीव व अजीव की प्रणति के दो भेद१ शुद्ध स्वभाव से और २ कर्म के सयोग के अशुद्ध प्रणति । इनसे जीव को विषय कषाय के सयोग से विभावना होती है। जिसे दूर करके जीव अपने ज्ञानादिक गुण मे रमण करे उसे स्वभाव धर्म