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जैनागम स्तोक संग्रह
कहते है | और पुद्गल का एक वर्ण, एक गन्ध एकरस, दो फरस ( स्पर्श ) में रमण होवे तो यह पुद्गल का शुद्ध जानना । इसके सिवाय चार द्रव्य में स्वभाव धर्म है परन्तु विभाव धर्म नहीं । चलन गुण, स्थिर गुण, अवकाश गुण, वर्तना गुरण आदि ये अपने २ स्वभाव को छोड़ते नही अत. ये शुद्ध स्वभाव धर्म है । एवं चार प्रकार की धर्म जाग्रका कही ।
अधर्म जाग्रिका :- संसार में धन कुटुम्ब परिवार आदि का संयोग मिलना व इसके लिये आरम्भादि करना, उन पर दृष्टि रखना व रक्षा करना आदि को अधर्म जाग्रिका कहते है ।
सुदखु जाग्रिका — सुदखु जाग्रिका :-सु कहेता अच्छी व दखु कहेता चतुराई की जाग्रिका । यह श्रावक की होती है कारण कि सम्यक् ज्ञान, दर्शन सहित धन कुटुम्बादिक तथा विपय कपाय को खराव जानता है । देश से निवृत्त हुआ है, उदय भाव से उदासीन पने है, तीन मनोरथ का चितन करता है । इसे सुदखु जाग्रिका कहते है ।