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नक्षत्र और विदेश गमन
३६६ ___ अठावोश नक्षत्रो मे पहला नक्षत्र अभीच है। इसके तारे तीन है, जिनका गाय के मस्तक तथा मुख समान आकार होता है। उत्तम जाति के स्वादिष्ट व सौरभदार (सुगन्धित ) वृक्ष के कुसुमो का उपभोग करके अर्थात् गुलकन्द खाकर गमन करने से अनेक लाभ होते है। १ अन्य मत से अश्वनी नक्षत्र प्रथम गिना जाता है। यह वहुसूत्री गम्य है। २ दूसरे श्रवण न० के तीन तारे है । आकार कामधेनु (कावड) समान है। इसके योग मे खीर खाण्ड खाकर पश्चिम सिवाय अन्य तीन दिशाओ मे जाने से इच्छिात कार्य की सिद्धि होती है। ३ तीसरे घनिष्टा न० के पाँच तारे है। इसका आकार तोते के पिजरे समान है। इसके सयोग से मक्खन आदि खाकर दक्षिण सिवाय अन्य दिशाओ मे गमन करने से कार्य सफल होता है । ४ शतभीखा न० के सौ तारे है। इसका आधार बिखरे हुए फल के समान है। इसके योग पर सारे (आखे) तुवर का भोजन खाकर दक्षिण सिवाय अन्य दिशाओ मे जाने से भय की सम्भावना रहती है। ५ पूर्वाभाद्रपद न० के दो तारे है। इसका आकार अर्ध वाव्य के भाग समान है। इसके योग पर करेले की शाक खाकर चलने पर लडाई होवे, परन्तु इससे ज्ञानवृद्धि की सम्भावना भी है । उत्तरा भाद्रपद न० के दो तारे है । इसका आकार भी पूर्वा भाद्रपद समान होता है। इसमे वासकपूर (वशलोचन) खाकर पिछले पहर चलने से सुख होता है। यह न० दीक्षा के योग्य है । ७ रेवती न० के वत्तीस तारे है। इसका आकार नाव समान है। इसके समय स्वच्छ जल पान करके चलने से विजय मिलती है । ८ अश्वनि न० के तीन तारे है । घोडे के बन्ध जैसा आकार है । मटर (वटले) की फली का शाक खाकर चलने से सुख-शान्ति प्राप्ति होती है । ६ भरणी न० के तीन तारे है। इसका आकार स्त्री के मर्मस्थान वत् है। तेल, चावल खाकर चलने पर सफलता मिलती है । १० कृतिका न० के छ: